जब हम मोनसून, वर्षा के सदीयों से चल रहे मौसमी बदलावों को दर्शाता शब्द है, जो दक्षिण एशिया में विशेष महत्व रखता है. इसे अक्सर बरसात कहा जाता है, और यह देश के जल चक्र, कृषि और सामाजिक जीवन को सीधे प्रभावित करता है। मोनसून का समय न सिर्फ़ मौसम विज्ञानियों के लिये, बल्कि किसान, व्यापारिक समुदाय और आम नागरिकों के लिये भी दिशा-निर्देश बन जाता है।
एक साल में दो प्रमुख मोनसून होते हैं – दक्षिण‑पश्चिमी मोनसून, जो जून से सितंबर तक बरसात लाता है और उत्तरी‑पूर्वी मोनसून, जो नवंबर‑फ़रवरी में कुछ क्षेत्रों में सूखा लाता है। इन दो मौसमी पैटर्न का मिलाजुला प्रभाव ही भारत की जलवायु, वायुमंडलीय परिस्थितियों का कुल मिलाकर स्वरूप बनाता है। इसलिए मोनसून को समझना, मौसम पूर्वानुमान और जल संसाधन प्रबंधन की बुनियाद है।
पहला पहलू है बारिश, वर्षा के रूप में गिरने वाला पानी। वर्षा की मात्रा, अवधि और वितरण सीधे‑सीधे कृषि, खेतों में फसल उगाने की प्रक्रिया को तय करती है। उदाहरण के तौर पर, 2023‑24 की फसल सीजन में जब आँधियों ने दक्षिण भारत में 400 mm से अधिक बारिश लाई, तो धान की पैदावार में 12 % की उछाल देखी गई। वहीँ अगर मॉनसून देर से शुरू होता है या असमान रूप से बंटा रहता है, तो सूखा का खतरा बढ़ जाता है।
दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है बाढ़ जोखिम, अत्यधिक बारिश से उत्पन्न जल स्तर का तेज़ बढ़ना। मोनसून के दौरान कई बार नदी‑कटाव, जलाशयों का अतिप्रवाह और शहरी बुनियादी ढाँचे की कमजोरी के कारण बाढ़ की स्थिति बनती है। 2025 में उत्तराखंड में हुए बाढ़ से 1.5 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए, जिससे लाल बलूती संरचनाओं की मजबूती पर सवाल उठे। बाढ़ प्रबंधन के लिए मौसम विज्ञानियों की सटीक भविष्यवाणी, स्थानीय प्रशासन की त्वरित प्रतिक्रिया और सामुदायिक जागरूकता का समन्वय जरूरी है।
तीसरा पहलू है जल संसाधन प्रबंधन, बारिश के पानी को संग्रहीत, शुद्ध और वितरण करने की प्रणाली। मोनसून के दौरान निर्मित जलधारा को जल टैंक, बांध और नहरों में संग्रहित किया जाता है, जिससे शुष्क मौसम में सिंचाई और पीने के पानी की उपलब्धता बनी रहती है। सरकारी योजनाओं जैसे "जल जीवन मिशन" ने छोटे-छोटे ग्रामीण क्षेत्रों में कुशल जल संग्रहण तकनीकें अपनाई हैं, जिससे जल संकट के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा रहा है।
इन सभी तत्वों को जोड़ते हुए हम देख सकते हैं कि मोनसून सिर्फ़ मौसम नहीं, बल्कि एक जटिल प्रतिकूल‑सहायक प्रणाली है जो जलवायु, कृषि, बाढ़ और जल प्रबंधन को एक साथ बुनती है। इस कारण से, मोनसून के बारे में समझदारी से तैयारी करना—जैसे मौसम पूर्वानुमान की निगरानी, फसल योजना में लचीलापन और बाढ़‑रोधी संरचनाओं की मजबूती—हर आम नागरिक के लिये फायदेमंद साबित होता है। अब आप तैयार हैं यह जानने के लिये कि नीचे दी गई लेखों में मोनसून से जुड़ी ताज़ा ख़बरें, विश्लेषण और उपयोगी टिप्स कैसे मदद करेंगे।
इंडियन मेटियोरोलॉजिकल डिपार्टमेंट (IMD) ने 2 जुलाई को उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भारी बारिश के लिये विशेष चेतावनी जारी की। पूर्वी प्रदेश में 2‑6 जुलाई तक तेज़ बूँदाबांदी, पश्चिमी भाग में 5‑8 जुलाई तक समान स्थिति की आशंका है। झाँसी में तापमान 28‑36°C, नमी 65% और हवाओं की गति 30‑40 किमी/घंटा रहेगी। नागरिकों से कहा गया है कि वे छत्री, वाटरप्रूफ कपड़े और सुरक्षित यात्रा व्यवस्था रखें। स्थानीय प्रशासन को भी जल निकासी और सड़कों की देखरेख के लिये तत्पर रहने की निर्देश दी गई।