जनवरी‑फ़रवरी 2024 में 13 राज्यों में हुए 46 विधानसभा रिक्तियों की चुनावी लड़ाई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के लिए एक बड़ा परीक्षण बन गई। BJP और उसके गठबंधन ने 26 सीटें जीत कर एक स्पष्ट बहुमत हासिल किया, पर यह जीत विभिन्न राज्यों में पूरी तरह से समान नहीं रही। पार्टी का प्रदर्शन देश के दो बड़े राजनीतिक मैदान—उत्तर प्रदेश और राजस्थान—में दिमाग़ घुमा देने वाला था, जबकि पश्चिम बंगाल में इसका तिरस्कार स्पष्ट दिखा।
कुल मिलाकर, कांग्रेस ने मात्र सात सीटें जीतीं, जो पिछले बाय‑इलेक्शन से छह सीटों की गिरावट दर्शाती है। इस परिणाम से पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर कमज़ोर पकड़ फिर से उजागर हुई, और यह सवाल खड़ा करता है कि भविष्य में कांग्रेस किस तरह से अपनी बुनियादी संरचना को पुनर्जीवित कर पाएगी।
उत्तर प्रदेश में BJP ने नौ में से सात सीटों को जीता, जिससे पार्टी की सत्ता में धाकड़ भूमिका और भी स्पष्ट हो गई। योगी आदित्यनाथ ने इस जीत को सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि से जोड़ा, यह दावा किया कि यह सामाजिक न्यायवादी पार्टी (SP)‑इंडिया गठबंधन के ढहने का इशारा है। प्रमुख जीतों में गाज़ीअबाद, खैर और फुलपुर शामिल थे, जबकि SP ने सिर्फ़ सिषामु और कारहाल को ही बचा पाई। खास बात यह थी कि कारहाल—अखिलेश यादव का पूर्व निर्वाचन क्षेत्र—में SP के तेज प्रताप यादव ने जीत दर्ज की, जो पार्टी की स्थानीय स्तर पर गहरी जड़ें दिखाती है।
**राजस्थान** में भी BJP ने राजनैतिक ताकत को मजबूती से पेश किया। सात में से पाँच सीटों को जीतते हुए पार्टी ने अपने इन्फ्लुएंस को फिर से स्थापित किया। झुंझुनू के राजेन्द्र हम्बू, देओली‑उनियारा के राजेन्द्र गुरjar, और सालुंबर के शांता अमृत लाल मीना जैसे नामी प्रतिद्वंद्वी इन्क्लूड हुए। कांग्रेस ने बस दाऊसा को ही बचा पाई, जबकि भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) ने चोरेसी जीतकर क्षेत्रीय राजनीति में अपनी जगह बनाई।
**केरल** में कांग्रेस-राष्ट्रीय के लिए एक बड़ी जीत मिली, जब प्रियांका गांधी ने वेयानाड से 6.22 लाख से अधिक वोटों के साथ अपनी पहली जीत दर्ज की। यह जीत न केवल गांधी परिवार के लिए एक नया अध्याय था, बल्कि राहुल गांधी के बाद इस सीट को संभालने का एक महत्वपूर्ण संकेत भी बना।
**पश्चिम बंगाल** में BJP की ठंडी सर्दी साफ़ दिखाई दी। तृणमूल कांग्रेस ने सभी छह सीटों को अपने नाम किया, जिसमें अलिपुर्दुर्हर जिले का मदरिहाट भी शामिल था, जिस पर BJP ने 2016 और 2021 के दो लगातार चुनाव जीत कर अपनी पकड़ बनाई थी। संगीता रॉय ने सिताई में 1.3 लाख वोटों के विशाल अंतर से जीत हासिल की, जबकि हरोआ, नौहाती, तालडांग्रा और मेडिनिपुर में भी TMC ने बड़ी जीतें दर्ज कीं। इस तरह की साफ़ जीत ने दिखा दिया कि राज्य में स्थानीय राजनीति राष्ट्रीय रुझानों से अधिक प्रभावी है।
बाय‑इलेक्शन के दौरान कई तकनीकी विवाद भी उभरे। ईवीएम में गड़बड़ी और प्रक्रिया संबंधी शिकायतें विभिन्न राज्यों में दर्ज की गईं, जो 2024 के आम चुनाव के दौरान भी प्रमुख मुद्दों में से एक थीं। विपक्षी पार्टियों ने तसल्ली नहीं दी और इस पर निरंतर सवाल उठाए, जिससे चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर तेज़ी से चर्चा हुई।
इन परिणामों को देखते हुए, यह कहना आसान नहीं है कि BJP का राष्ट्रीय स्तर पर कितना नियंत्रण बना रहेगा। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में दिखी मजबूती यह संकेत देती है कि पार्टी के पास अभी भी बड़े जनसमूह को जोड़े रखने की क्षमता है। परन्तु पश्चिम बंगाल जैसे प्रमुख राज्य में हुए बड़े नुकसान यह भी दर्शाते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियों का इन्फ्लुएंस अभी भी काफी गहरा है। इस मिश्रित परिदृश्य में, आगे आने वाले महीनों में पार्टियों की रणनीति, गठबंधन और स्थानीय मुद्दों पर फोकस तय करेगा कि 2025 के राज्य चुनावों में कौन सी धारा आगे बढ़ेगी।