एक अहम मैनेजमेंट मीटिंग के बाद Jefferies ने Adani Power पर अपनी 'Buy' रेटिंग कायम रखी है और 690 रुपये का लक्ष्य तय किया है। मौजूदा स्तरों से यह करीब 18% ऊपर की गुंजाइश दिखाता है। रिपोर्ट का मकसद सिर्फ कीमत का अंदाज़ा लगाना नहीं, बल्कि यह समझाना भी है कि कंपनी की कमाई कितनी स्थिर और टिकाऊ हो रही है।
ब्रोकरेज के मुताबिक कंपनी के पास क्षमता बढ़ाने का साफ रोडमैप है और बैलेंस शीट पहले से बेहतर स्थिति में है। नए प्रोजेक्ट लाभदायक पावर परचेज एग्रीमेंट (PPA) के जरिए लिए जा रहे हैं, जिससे कमाई की दृश्यता बढ़ती है। उपकरण सप्लाई के लिए BHEL के साथ करीबी तालमेल और इन-हाउस प्रोजेक्ट मैनेजमेंट ने कैपेक्स टाइमलाइन को ट्रैक पर रखा है। और जो सबसे बड़ा डर था—बांग्लादेश से बकाए—वह भी ताजा भुगतान आने के बाद थमता दिख रहा है।
Jefferies ने तीन परिदृश्यों के आधार पर वैल्यूएशन रखा है। बेस केस में FY30 तक इंस्टॉल्ड कैपेसिटी 30.7 गीगावॉट मानी गई है और मर्चेंट रियलाइजेशन 6.1 रुपये प्रति यूनिट। FY25-30 के दौरान राजस्व में 20% और EBITDA में 14% CAGR का अनुमान इसी से निकलता है—जिस पर 690 रुपये का फेयर वैल्यू लक्ष्य टिकता है। अपसाइड केस में क्षमता वही रहती है, पर ग्रोथ थोड़ी तेज—राजस्व 21% और EBITDA 16% CAGR—तो लक्ष्य 765 रुपये तक जाता है। डाउनसाइड में मांग सुस्त रहने की स्थिति मानकर लक्ष्य 365 रुपये तक नीचे आता है, यानी 38% तक का जोखिम संभव है।
कंपनी का संदेश साफ है: FY30 तक EBITDA दोगुना करना है। FY23-25 में कुल क्षमता 29% बढ़कर 17.6 GW हो चुकी है, जिसमें 3.9 GW की बढ़त में से 2.3 GW अधिग्रहण से आई। मैनेजमेंट 30 GW तक पहुंचने का लक्ष्य दोहरा रहा है। साथ ही, मर्चेंट मार्केट पर निर्भरता FY25 के 18% से घटकर FY30 में 10-12% के दायरे में लाने की योजना है, ताकि कमाई में उतार-चढ़ाव कम हो। नेट डेब्ट-टू-इक्विटी भी मौजूदा 0.7x से FY30 में 0.6x तक नीचे लाने का इशारा दिया गया है—वह भी क्षमता लगभग दोगुनी करते हुए।
मार्केट सेंटीमेंट की बात करें तो सिर्फ Jefferies ही नहीं, Morgan Stanley ने भी कवरेज शुरू करते हुए 'ओवरवेट' रेटिंग और 818 रुपये का लक्ष्य दिया है। एनालिस्ट कंसेंसस 'Buy' पर है और औसत लक्ष्य 653.33 रुपये दिख रहा है, जो मौजूदा कीमत के मुकाबले 7.39% ऊपर बैठता है।
Jefferies का बुल केस चार सीधे बिंदुओं पर टिका है:
यहां PPAs बनाम मर्चेंट की बहस अहम है। PPA में निर्धारित टैरिफ और निश्चित ऑफटेक मिलता है, जिससे राजस्व का अंदाज़ा बेहतर बैठता है। मर्चेंट मार्केट में कीमत ऊंची भी मिल सकती है, पर जोखिम ज्यादा है। Jefferies का मानना है कि FY30 तक मर्चेंट एक्सपोजर कम करने की रणनीति कमाई को स्थिर बनाएगी। बेस केस में 6.1 रुपये प्रति यूनिट का मर्चेंट रियलाइजेशन मानना भी इसी संतुलन को दर्शाता है—अत्यधिक आक्रामक नहीं, पर बहुत सतर्क भी नहीं।
बांग्लादेश रिसीवेबल्स पर निवेशकों की चिंता पिछले महीनों में बढ़ गई थी—विदेशी मुद्रा स्थिति और भुगतान साइकल सुस्त होने से अनिश्चितता आई। ताजा भुगतान से यह जोखिम नरम पड़ा है। कंपनी की झारखंड स्थित एक्सपोर्ट-ओरिएंटेड सप्लाई चेन इस समीकरण में महत्वपूर्ण कड़ी है; भुगतान की नियमितता बढ़ते ही फ्री कैश फ्लो और नेट डेब्ट का ट्रेंड और आरामदेह दिख सकता है।
कैपेक्स का अनुशासन इस कहानी की दूसरी धुरी है। बड़े थर्मल प्रोजेक्ट्स में समय पर टर्बाइन-बॉयलर की डिलीवरी अक्सर सबसे बड़ा जोखिम रहती है। BHEL के साथ अग्रिम प्लानिंग और इन-हाउस प्रोजेक्ट मैनेजमेंट से लागत और समय दोनों पर पकड़ बनती है। यही वजह है कि Jefferies ने execution risk को “मैनेजेबल” माना है।
वैल्यूएशन फ्रेमवर्क में तीनों परिदृश्यों का बैलेंस निवेशक के लिए काम का है:
अब बात जोखिमों की, जो नजरअंदाज नहीं की जा सकती:
कंपनी-स्तर पर कुछ पॉजिटिव ट्रिगर्स भी साफ दिखते हैं। पहला, ऑपरेशनल कैश फ्लो बढ़ने से नेट डेब्ट-टू-इक्विटी 0.7x से 0.6x पर जाने का मार्ग खुला है—यह संकेत देता है कि विस्तार “लेवरेज-हेवी” नहीं होगा। दूसरा, मर्चेंट हिस्सेदारी घटने से कमाई का उतार-चढ़ाव सीमित हो सकता है, जो प्राइस-टू-अर्निंग्स मल्टीपल को सपोर्ट देता है। तीसरा, अधिग्रहण के जरिए जो 2.3 GW क्षमता जोड़ी गई, उसे सिंर्जीज के साथ स्थिर चलाना अब फोकस रहेगा।
इंडस्ट्री का परिप्रेक्ष्य भी इस कहानी में जोड़ता है। देश में बिजली की मांग लगातार ऊंचे आधार पर बढ़ रही है—गर्मी की पिक डिमांड, औद्योगिक खपत और शहरीकरण उसका बैकबोन हैं। ग्रिड में रिन्यूएबल के बढ़ते हिस्से के साथ बेस-लोड और फ्लेक्सिबल थर्मल की भूमिका बनी हुई है। ऐसे में दीर्घकालिक PPAs और कुशल ऑपरेशन वाली कंपनियाँ अधिक स्थिर मानी जा रही हैं।
निवेशकों के लिए संदेश साफ है: स्टॉक पर बुल केस के तर्क मजबूत हैं—परिदृश्य-आधारित वैल्यूएशन पारदर्शी है—और इंडस्ट्री टेलविंड्स भी साथ हैं। वहीं, डाउनसाइड केस भी रिपोर्ट में स्पष्ट रखा गया है ताकि उम्मीदों और जोखिमों का संतुलन बना रहे। अगले कुछ तिमाही में नजर रखने लायक डेटा पॉइंट्स—प्रोजेक्ट कमीशनिंग की टाइमलाइन, PPA क्लोजर की गति, बांग्लादेश व घरेलू डिस्कॉम्स से कलेक्शन ट्रेंड, और मर्चेंट प्राइसिंग का पैटर्न—स्टॉक की दिशा तय करेंगे।