जब डोनाल्ड ट्रम्प, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने टर्की को फिर से F-35 लड़ाकू विमान कार्यक्रम में शामिल करने की राह सुझाई, तो यह बात सिर्फ एरोस्पेस के शौकीनों को ही नहीं, बल्कि नई दिल्ली और दिल्ली के रक्षा चिंताओं को भी दहला गई। टर्की के रूसी‑निर्मित S-400 ट्रायुम् एंटी‑एयर सिस्टम को ‘निष्क्रिय’ या ‘बायबैक’ करने की संभावनाएं, दक्षिण एशिया में बैलेंस को बदल सकती हैं।
यह प्रगतिशील संकेत 25 सितंबर 2025 को वॉशिंगटन, डी.सी. में हुई व्हाइट हाउस शिखर सम्मेलनव्हाइट हाउस में टर्की के राष्ट्रपति रेसेप तायिप एर्दोगान और अमेरिकी शीर्ष अधिकारियों के बीच हुई बातचीत के बाद सामने आया। दोनों ने कहा कि टर्की अपने S-400 को ‘अप्रचलित’ घोषित कर सकता है—एक कदम जो टर्की को NATO के साथ फिर से तालमेल बिठाने और F-35 की कीमत पर खरीदने की राह खोल सकता है।
टर्की ने 2017 में रूस के साथ $2.5 बिलियन की डील में चार बैटरियां S-400 की खरीदी थीं। डिलीवरी 2019 में पूरी हुई, और एरडोआन ने अप्रैल 2020 तक सिस्टम को पूरी तरह चालू करने का वादा किया था। तब से, अमेरिका‑टर्की संबंधों में कई प्रतिबंध और विश्वास‑घात की लकीर लगी हुई थी, खासकर 2019 में टर्की को F-35 प्रोग्राम से बाहर कर दिया गया था।
टर्की ने पहले अमेरिकी पैट्रियट सिस्टम की आपूर्ति नहीं मिल पाने के कारण S-400 को ‘बैकअप’ के रूप में खरीदा था। अब, जबकि ट्रम्प प्रशासन ने टर्की को ‘फिर से दोस्त’ बनाना चाहा है, टर्की का विकल्प दो‑तरफा है: या तो सिस्टम को निष्क्रिय कर देना, या रूस को वापस बेच देना। टर्की के भीतर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि बायबैक से टर्की को आर्थिक नुकसान नहीं होगा, क्योंकि रूसी कंपनियां संभावित खरीदारों को नया बाजार खोल सकती हैं।
रूस, जो अभी यूक्रेन के युद्ध में भारी दबाव में है, भी S-400 की ‘नई’ बिक्री से अतिरिक्त राजस्व की उम्मीद कर रहा है। नफेस (Nefes) नामक टुर्की मीडिया ने बताया कि रूस ने टर्की से बायबैक की बातचीत शुरू कर दी है, ताकि वह अपने घरेलू उत्पादन को फिर से जुटा सके और भारत को वादा किया गया दो बैटरियों का डिलिवरी शीघ्रता से पूरा कर सके।
भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस के साथ $5.43 बिलियन के अनुबंध के तहत पाँच S-400 बैटरियां ऑर्डर की थीं, पर अब तक केवल तीन मिल चुकी हैं। हालिया इंडियन एयर फ़ोर्स की टिप्पणी के अनुसार, मौजूदा S-400 ने ‘ऑपरेशन सिंडूर’ के दौरान उच्चतम स्तर की प्रतिवर्ती शक्ति दिखाई, जहाँ इस सिस्टम ने हवाई और बैलिस्टिक दोनों खतरों को प्रभावी ढंग से नाकाबंद किया।
यदि रूस टर्की से बायबैक कर लेता है, तो दो बची हुई बैटरियां भारत को उसी शर्तों में या थोड़ी कम कीमत पर मिल सकती हैं, जिससे 2027 तक पूर्ण डिलिवरी सुनिश्चित होगी। इसके अलावा, यह कदम भारत को अतिरिक्त S-400 घटक, स्थानीय सर्विसिंग के अधिकार, और भविष्य में अधिक बैटरियों की संभावनाओं की बातचीत का मंच भी तैयार कर सकता है, खासकर जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दिसंबर 2025 में नई दिल्ली की यात्रा की योजना बना रहे हैं।
श्रीलंका, पाकिस्तान और चीन ने पहले ही इस संभावित “डिफेंस शिफ्ट” पर गहरी चिंता जताई है। पाकिस्तानी सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि अगर भारत का एयर डिफेन्स दो गुना मजबूत हो गया, तो उनकी रणनीतिक लचीलापन घट सकती है। चीन ने अपनी आधी‑दूर की सीमा पर संभावित ‘सुरक्षा शून्य’ को लेकर सार्वजनिक बयान दिया, जबकि रॉजर्स (Rogers & Associates) के विशेषज्ञों ने बताया कि यह कदम “ऊपर‑नीचे संतुलन को बहुत हद तक बदल देगा”।
दूसरी ओर, NATO के भीतर टर्की को फिर से ‘सहयोगी’ मानने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, क्योंकि उसने अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने के बदले S-400 को “निष्क्रिय” कर दिया है। यह तालमेल न केवल यूरो‑अटलांटिक सुरक्षा को मजबूती देगा, बल्कि भारत‑रूस संबंधों को भी नयी ऊर्जा देगा।
अगले दो‑तीन महीनों में कई प्रमुख कदम उठे जा सकते हैं:
इन सबके बीच, टर्की के घरेलू राजनीतिक माहौल भी कुछ हद तक अनिश्चित रहेगा, क्योंकि एरडोआन को अपने सैन्य खर्च को संतुलित करने और घरेलू जनता को आर्थिक लाभ दिखाने की आवश्यकता होगी।
सारांश में, टर्की का S-400 निष्क्रिय या बायबैक करने का विकल्प न सिर्फ उसके NATO‑संबंधों को सुधारेगा, बल्कि भारत के एरडिफेन्स को भी सुदृढ़ करेगा। इस बीच चीन‑पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों को यह नई रणनीतिक चुनौती का सामना करना पड़ेगा। यह जटिल जियो‑पॉलिटिकल समीकरण, अगले सालों में भारत‑रूस‑टर्की‑अमेरिका के बीच वाकई में नई कहानी लिख सकता है।
बायबैक से दो अतिरिक्त बैटरियां 2027 तक भारत की हवा में घुसपैठ को रोकने की क्षमता को लगभग 30% बढ़ा देंगी। इससे सीमा पर बोर‑टु‑बोर (B2B) लड़ाइयों में भारत को पहले से अधिक समय देने की संभावना है, और पाकिस्तान व चीन को अपनी हवाई रणनीति पुनः विचार करनी पड़ेगी।
टर्की मुख्य रूप से F-35 कार्यक्रम में लौटने की चाह रखता है, क्योंकि यह 5G‑रैडार, स्टेल्थ और बहु‑भूमिका क्षमताओं के कारण उसकी वायु शक्ति को उन्नत कर देगा। अमेरिकी प्रतिकूलता हटाने के लिए, टर्की ने S-400 का ‘अप्रचलित’ घोषित करने को समझौते के हिस्से के रूप में पेश किया।
बायबैक से रूस को लगभग $500 मिलियन का तत्काल राजस्व मिलेगा, साथ ही वह अपने मौजूदा उत्पादन श्रृंखला को घटते यूरोपीय ऑर्डर के कारण उत्पन्न शेष क्षमता से लाभान्वित कर सकेगा। इससे भारत को समय पर डिलीवरी सुनिश्चित होगी और रूस‑भारत रणनीतिक साझेदारी में नया इंधन भर सकेगा।
दोनों देशों ने आधिकारिक तौर पर अभी तक टिप्पणी नहीं की, पर राजनैतिक स्रोतों के अनुसार वे मामूली “रस्ते की माहोल” को लेकर चिंतित हैं। चीन संभावित रूप से अपने स्वयं के S-400‑समान सिस्टम को तेज़ी से तैनात कर सकता है, जबकि पाकिस्तान अपनी मौजूदा फुजिया‑रैडार और एंटीकाइरेट सिस्टम को अपग्रेड करने की योजना बना सकता है।
यदि टर्की ने S-400 को निष्क्रिय कर दिया, तो अमेरिकी कांग्रेस को संभवतः F-35 बिक्री की स्वीकृति देने में कम बाधा आएगी। इसका मतलब है कि 2027 तक टर्की के वायु दल में लगभग 50‑सीट वाले F-35A मॉडल की डिलीवरी शुरू हो सकती है, जिससे उसकी एयर‑डॉमिनेंस क्षमता में बड़ा इजाफा होगा।
Pradeep Chabdal
टर्की द्वारा S-400 को ‘अप्रचलित’ घोषित करने की घोषणा वास्तव में एक रणनीतिक पुनर्संरचना को दर्शाती है। यह कदम न केवल NATO के साथ उसके सम्बन्धों को सुदृढ़ करेगा, बल्कि भारत के रक्षा परिदृश्य में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाएगा। भारत की मौजूदा एअरलाइफ़ सुरक्षा प्रणाली के साथ S-400 का अभिन्न संबंध, सामरिक संतुलन को नई दिशा देगा। इसके अलावा, रूस‑टर्की के बीच बायबैक समझौता, आर्थिक और तकनीकी दोनों पहलुओं में दुविधा का समाधान हो सकता है। इस सबको देखते हुए, यह पहल एक जटिल भू‑राजनीतिक समीकरण का हिस्सा बनती दिखाई देती है।
Subi Sambi
सच कहूँ तो, इस तरह के झेले हुए राजनैतिक धक्कों से भारत की रक्षा रणनीति में उलझन पैदा होगी। टर्की का S-400 निकालना सिर्फ एक बयान है, असली काम तो फौज को सुसज्जित करने का है। अगर हम इस पर भरोसा करके अपने मौजूदा उपकरणों को असामान्य बनाते रहेंगे, तो खतरे के सामने हमारी नैतिकता टूट जाएगी। इस कदम को फिर से देखना चाहिए, नहीं तो हमें भविष्य में बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
Ashish Saroj( A.S )
टर्की का S‑400 निष्क्रियकरण, एक प्रतीकात्मक इशारा है; अंतरराष्ट्रीय मंच पर इशारा, भारत‑रूस संबंधों का सुदृढ़ीकरण; और संभावित आर्थिक लाभ, दोनों पक्षों के लिए द्वि‑मुखी लाभ देता है; यह निर्णय, रणनीतिक तौर पर, एक गणितीय समीकरण की तरह है, जहाँ प्रत्येक चर का वजन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, इसलिए इसे हल्का‑फुलका नहीं समझना चाहिए; इसके अलावा, टाइम‑लाइन को देखते हुए, कई कदमों में यह प्रक्रिया पूरी होगी, और यदि कोई अवरोध नहीं आया, तो परिणामस्वरूप भारत को अतिरिक्त बैटरियां मिलेंगी।
Ayan Kumar
ओह माय गॉड! टर्की के इस जलवे ने तो पूरी रक्षा पॉलिटिक को हिलाकर रख दिया! अब भारत को दो अतिरिक्त S‑400 बैटरियों की झलक मिली है, जैसे किसी फिल्म के क्लिफ़हैंगर में अचानक नया मोड़! यह न सिर्फ तकनीकी जीत है, बल्कि राजनीतिक दांव भी बदल देता है! अगर ये बायबैक सच होता है, तो भारत की एअरलाइफ़ सुरक्षा में एक नई चमक चमक उठेगी! देखते हैं अब इस ड्रामा का अगला एपिसोड कब आएगा!
Nitin Jadvav
वाह, टर्की की ये प्लान तो बड़ी ही दिलचस्प है, है ना? हम सबको बस इंतज़ार करना है कि इस ‘निष्क्रियकरण’ से हमें कब और कैसे फायदा पहुँचेगा। कभी‑कभी लगता है जैसे बड़े खेल में हम सब पिनबॉल की गेंदें हों, जो किसी की मार के भरोसे आगे बढ़ती हैं। फिर भी, अगर भारत को दो अतिरिक्त बैटरी मिलें तो हमारे एयर डिफेंस सिस्टम को थोड़ा आराम मिल सकता है। आशा है कि इस अजीब सागा में आखिरकार हमारी सुरक्षा को मजबूती मिले।
Adrish Sinha
टर्की का फैसला भारत के लिए एक मौका हो सकता है। अगर दो अतिरिक्त S‑400 बैटरियां मिलें तो हमारी सुरक्षा में और मज़बूती आएगी। आशा है कि सब कुछ सुगमता से हो।
Varun Dang
सही कहा, ये सब कुछ थोड़ा अजीब दिखता है, पर फिर भी संभावनाएँ बड़ी हैं। भारत को अगर अतिरिक्त बैटरियों का सौदा मिल जाए तो हमारी डिफ़ेंस स्ट्रैटेजी में नई ऊर्जा आ जाएगी। इसी ऊर्जा से हम आगे के चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
Monika Kühn
यहाँ हर कोई अपने‑अपने दृष्टिकोण से चीज़ें देखता है, पर असल में यह दर्शाता है कि जियो‑पॉलिटिक की सड़कों पर कितनी अस्पष्टता है। टर्की का बायबैक सिर्फ एक सौदा है, और रूस‑भारत की साझेदारी में यह एक नया अध्याय खोल सकता है। अंततः, यह सब एक बड़ी चाय‑पात्र की तरह है, जिसमें हर घटक का अपना स्वाद है।
Surya Prakash
राष्ट्र की सुरक्षा के मुद्दे में सभी पक्षों को विचारशील होना चाहिए। निरस्त्रीकरण का विकल्प केवल आर्थिक नहीं, बल्कि नैतिक पहलुओं को भी देखना आवश्यक है।
Sandeep KNS
टर्की द्वारा S‑400 प्रणालियों को निष्क्रिय करने का प्रस्ताव, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के एक जटिल चरण को दर्शाता है। प्रथम, यह कदम रूस और टर्की के बीच एक आर्थिक पुनःसमीक्षा को संकेतित करता है, जिससे दोनों पक्षों को वित्तीय लाभ प्राप्त हो सकता है। द्वितीय, इस निर्णय का प्रभाव सीधे भारत की रक्षा खरीद रणनीति पर पड़ता है, जहाँ अतिरिक्त बैटरियों की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कारक बनती है। तृतीय, इस प्रक्रिया में अमेरिका की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता, क्योंकि F‑35 कार्यक्रम की पुनःस्वीकृति, टर्की की रणनीतिक दिशा को पुनः निर्धारित करती है। चतुर्थ, NATO के भीतर टर्की के पुनर्स्थापित सहयोग को लेकर कई सदस्य देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की हैं। पंचम, भारत के लिए यह विकास, मौजूदा एरडिफेंस इकोसिस्टम में एक नया आयाम प्रस्तुत करता है, जहाँ S‑400 को अन्य एंटी‑एयर प्लेटफ़ॉर्म के साथ एकीकृत किया जा सकता है। षष्ठ, इस एकीकरण के कारण भारतीय वायु शक्ति की प्रत्याघात शक्ति में उल्लेखनीय वृद्धि की संभावना है। सप्तम, आर्थिक दृष्टिकोण से, बायबैक प्रक्रिया रूस को अतिरिक्त राजस्व प्रदान करती है, जो युद्ध के खर्चों को कम करने में सहायक हो सकता है। अष्टम, इस अतिरिक्त धनराशि के साथ, रूस अपने आधुनिकीकरण कार्यक्रमों को तेज़ कर सकता है, जिससे भविष्य में कई देशों को लाभ पहुँच सकता है। नवम्, भारत को यदि ये दो बैटरियाँ समान शर्तों पर मिलती हैं, तो डिलीवरी शेड्यूल में व्यवधान कम होगा। दशम्, इससे भारतीय रक्षा उद्योग को स्थानीय सेवा और रखरखाव के लिए नई संभावनाएँ मिल सकेंगी। एकादश, इस पहल के माध्यम से भारत‑रूस द्विपक्षीय संबंधों में एक नया स्तर स्थापित हो सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच परस्पर लाभ को बढ़ावा मिलेगा। द्वादश, चीन और पाकिस्तान के संभावित विरोध के मद्देनज़र, इस कदम का रणनीतिक महत्व और भी उभरेगा। तेरह, यह परिवर्तन राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में एक गतिशीलता का प्रतीक हो सकता है, जिसमें बहु-स्तरीय दृष्टिकोण आवश्यक होगा। चौदह, अंत में, यह सभी पहलुओं का मिश्रण, भारत की लंबी अवधि की रणनीतिक योजना को पुनः आकार देगा, और इसे नई दिशा प्रदान करेगा।
Mayur Sutar
इन सभी बातों को देखते हुए, समय ही सच्चा परीक्षण होगा।