ब्रिक्स एक ऐसा मंच है जिसमें दुनिया की प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। यह समूह ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से मिलकर बना है, जो वैश्विक जनसंख्या का लगभग आधा और विश्व अर्थव्यवस्था का लगभग एक चौथाई हिस्सा हैं। ब्रिक्स को विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष जैसे उत्तरी ग्लोबल के प्रभुत्व वाले संस्थानों का प्रत्युत्तर माना जाता है।
इस संगठन की स्थापना के पीछे बड़े उद्देश्यों में से एक था कि ये देश भविष्य में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से होंगे। 2001 में गोल्डमैन सैक्स ने 'द वर्ल्ड नीड्स बेटर इकोनॉमिक ब्रिक्स' नामक रिपोर्ट में सबसे पहले इस संज्ञा का प्रयोग किया था, जिसमें भविष्यवाणी की गई थी कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन अगले 50 वर्षों में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में होंगे।
इस बार के ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कई महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं। इसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ संभावित मुलाकात भी प्रमुख है, खासतौर पर तत्कालीन समझौते के बाद, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सामरिक संबंधों के पुनर्निर्माण के प्रयासों का हिस्सा हैं। इस बैठक का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि दक्षिण एशिया के पड़ोसी के साथ भारत के संबंध फिलहाल तनावपूर्ण रहे हैं।
इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मिलेंगे। यह मुलाकात भारत और रूस के वर्षों पुराने मैत्रीपूर्ण संबंधों को और मजबूत करेगी, खासकर ऐसे समय में जब रूस पर यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिम की ओर से दबाव बढ़ा हुआ है। इस सम्मेलन में रूस ने विश्व के नेताओं को एकत्रित कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि रूस को अलग-थलग करने के पश्चिमी प्रयास विफल हो चुके हैं।
जनवरी 2024 में चार नए देशों—मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात—के शामिल होने के साथ, ब्रिक्स संगठन का विस्तार किया गया है। इस विस्तार ने ब्रिक्स को वैश्विक मुद्दों पर अधिक व्यापक मंच बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक, यह विस्तार इसकी समावेशकता और वैश्विक भलाई के लिए इसके एजेंडा को और अधिक मजबूत बनाता है।
भारत, ब्रिक्स के माध्यम से व्यापार, सुरक्षा, आर्थिक और जलवायु सहयोग को बढ़ाने का प्रयास करेगा। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ब्रिक्स ने अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त नहीं किया है, जिसका एक कारण आंतरिक मतभेद हैं, जैसे कि भारत-चीन सीमा विवाद, और सभी सदस्य देश रूस और चीन की पश्चिम के प्रति दुर्भावना साझा नहीं करते हैं।
ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन और रूस के राष्ट्रपतियों के साथ द्विपक्षीय बैठक करने की भी संभावना है। यह बैठकें वैश्विक मुद्दों के समाधान में भारत की रणनीतिक स्थितियों को दर्शाती हैं। मोदी और शी जिनपिंग की पिछली मुलाकात ब्रिक्स सम्मेलन 2023 के दौरान हुई थी, और अब इस नई मुलाकात से आसार हैं कि भारत और चीन के बीच सरहदी गतिरोध को थोड़ा कम किया जा सकेगा।
ईरान, जो कि पश्चिम एशिया के राजनीतिक विवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियन भी इस सम्मेलन में भाग लेंगे। यह ग्लोबल साउथ के बढ़ते महत्व को दर्शाने का एक अवसर होगा, जो अपने राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा मुद्दों को एक सकारात्मक दिशा में ले जाने के लिए एकजुट हैं।
अंततः, भारत ब्रिक्स को एक ऐसा मंच मानता है जहां वैश्विक विकास के एजेंडे पर चर्चा की जा सकती है, जिसमें जलवायु परिवर्तन, आर्थिक सहयोग, बहुपक्षीय सुधार, लच्क्षभक्ष्य मांगना, और सांस्कृतिक संबंधों को बढावा देना शामिल है।