भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को अब राज्यसभा में अपनी संख्या में महत्वपूर्ण कमी का सामना करना पड़ा है। पिछले दिनों चार सदस्य सोनल मानसिंह, महेश जेठमलानी, राकेश सिन्हा और राम शकल के बाहर होने से राज्यसभा में बीजेपी के सदस्यों की संख्या घटकर 86 हो गई है। इसके साथ ही नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) भी 101 सदस्यों पर सिमट गया है, जबकि 245 सदस्यीय राज्यसभा में बहुमत के लिए 113 सीटों की जरूरत होती है।
वहीं, विपक्षी दलों की स्थिति मजबूत होती दिख रही है। विपक्षी गुट, जिसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), और डीएमके शामिल हैं, की कुल संख्या 87 है। कांग्रेस के पास 26 सीटें हैं, तृणमूल कांग्रेस के पास 13, और दोनों AAP और डीएमके के पास 10-10 सीटें हैं। यह स्थिति बीजेपी और एनडीए के लिए एक कठिन चुनौती का संकेत देती है कि वह राज्यसभा में अपने प्रस्तावों को मंजूरी दिला पाएंगे या नहीं।
बीजेपी की निगाहें अब आगामी उपचुनावों पर टिकी हैं, जिनमें वह विचार करती है कि बहुमत हासिल करने के लिए कुछ और सीटें जीत सकती है। बिहार, महाराष्ट्र, असम, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और त्रिपुरा में होने वाले उपचुनावों में पार्टी की रचनात्मत्मकता और रणनीति की परीक्षा होगी। सरकार के नॉमिनेटेड सदस्य भी, जिन्हें अब तक नामित नहीं किया गया है, उम्मीद है कि वे ट्रेजरी बेंचों के साथ संरेखित होंगे।
वर्तमान में राज्यसभा में 19 सीटें खाली हैं, जिनमें से जम्मू और कश्मीर में चार सीटों को लेकर अधर में हैं क्योंकि वहां 2019 के बाद से कोई विधानसभा नहीं है। इसके अलावा, कांग्रेस आंध्र प्रदेश में एक सीट जीतने की उम्मीद कर रही है, लेकिन राजस्थान में बीजेपी की केसी वेणुगोपाल की सीट जीतकर इस लाभ की क्षति भी संभव है। हरियाणा में भी बीजेपी को अपने राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा की सीट के लोकसभा में जाने से खाली हुए स्थान को भरने की उम्मीद है।
इन सबके बीच, चुनाव आयोग ने 11 रिक्तियों को भरने के लिए चुनाव की तारीख की घोषणा नहीं की है। इन रिक्तियों में सदस्यों के इस्तीफे के कारण बनी खाली सीटें शामिल हैं, जो सत्ता समीकरणों में गहराई से असर डाल सकती हैं।
यह स्पष्ट है कि राज्यसभा के मौजूदा शक्ति समीकरण बीजेपी के सामने कई नए सवाल खड़े कर रहे हैं। आगामी उपचुनाव और नई नामांकित सदस्यों की नियुक्ति से जो भी परिणाम आएंगे, वे तय करेंगे कि बीजेपी और एनडीए बहुमत पा सकते हैं या नहीं। वहीं विपक्ष भी पूरी तरह से तैयार है कि वह इस कमजोर पल का पूरा फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़े।