जब हम अंडर‑डिस्प्ले कैमरा, एक ऐसी फोटो सेंसर तकनीक है जो स्क्रीन के भीतर ही छिपा कर रखती है, जिससे पूरी स्क्रीन बिना किसी छेद के उपयोग में आती है. इसे अक्सर सपोर्टेड कैमरा भी कहा जाता है. इस तकनीक का मुख्य मकसद बिना बाधा वाला फुल‑स्क्रीन अनुभव देना है, खासकर उन स्मार्टफ़ोन, जिनमें स्क्रीन का हर इंच एस्थेटिक और फ़ंक्शनल दोनों मायनों में महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन अंडर‑डिस्प्ले कैमरा सिर्फ डिजाइन नहीं, यह कई तकनीकी परतों का एक मिश्रण है, जैसे OLED डिस्प्ले, जिसमें पिक्सेल खुद प्रकाश बनाते हैं और इसलिए स्क्रीन के पीछे जगह बनती है कैमरा के लिए और AI इमेज प्रोसेसिंग, जो छिपे हुए लेंस से आए न्यूनतम प्रकाश को साफ़, तेज़ और रंगीन बनाती है. इन सबका मिलाजुला प्रभाव ही अंडर‑डिस्प्ले कैमरा को कामयाब बनाता है.
पहला घटक है टचस्क्रीन तकनीक। स्क्रीन को टैप और स्वाइप में लचीलापन चाहिए, जबकि लेंस को सही तरह से प्रकाश इकट्ठा करना है. इसलिए निर्माताओं को टच‑स्क्रीन सेंसर और कैमरा की लाइट‑सेन्सिंग लेयर के बीच न्यूनतम दूरी बनाए रखनी पड़ती है. दूसरा प्रमुख भाग है पिक्सेल‑ट्रांसफ़र मोटर (PTM) या वैरिएबल एवरी लाइट (VA) मैट्रिक्स, जो स्क्रीन को तब तक पारदर्शी बनाता है जब फोटो ली जा रही हो और तुरंत फिर से ओपेक बन जाता है. यह स्विचिंग गति, लाइट लीक और रंग बैंडिंग को नियंत्रित करती है, वरना फोटो धुंधला या रंगहीन दिख सकता है. तीसरा, सबसे जटिल, AI इमेज प्रोसेसिंग एल्गोरिद्म है. जब कैमरा के सामने के पिक्सेल टिंटेड होते हैं, तो सॉफ्टवेयर को हर फ्रेम को डीस्ट्रक्चर करके साफ़ चित्र बनाना पड़ता है. यह प्रोसेसिंग अक्सर डिवाइस के चिपसेट (जैसे Qualcomm Snapdragon या MediaTek Dimensity) की AI कोर पर निर्भर करती है. अगर प्रोसेसिंग में देरी या ऊर्जा खपत अधिक हो, तो बैटरी लाइफ घट सकती है और उपयोगकर्ता अनुभव प्रभावित हो सकता है.
इन तकनीकों के साथ, अंडर‑डिस्प्ले कैमरा की व्यावहारिक सीमाएँ अभी भी मौजूद हैं. वर्तमान में अधिकांश फोन 1080p या 1200p रिज़ॉल्यूशन पर काम करते हैं, जबकि हाई‑एंड रियर कैमरों का रिज़ॉल्यूशन 48MP या उससे अधिक हो सकता है. प्रकाश की कमी और बैकलाइट स्थितियों में फोटो गुणवत्ता अक्सर बेंचमार्क में पीछे रह जाती है. फिर भी, कंपनियों जैसे Samsung, Xiaomi और Vivo ने बड़े‑स्क्रीन फ़्लैगशिप पर इस तकनीक को प्रयोग में लाया है, जिससे आगे के सुधार की आशा बढ़ी है. यही कारण है कि तकनीक‑सम्बंधित समाचार, जैसे LG Electronics का IPO या कई स्मार्टफ़ोन लॉन्च, हमारे पेज पर अक्सर आते हैं – क्योंकि ये घटनाएँ दिखाती हैं कि कैसे उद्योग में निवेश और नवाचार एक साथ चल रहे हैं.
यदि आप इस क्षेत्र में गहराई से पेशेवर बनना चाहते हैं, तो कुछ कौशल आवश्यक हैं: पहला, स्क्रीन टेक्नोलॉजी की बुनियादी समझ – OLED, AMOLED और LTPO के बीच अंतर. दूसरा, इमेज प्रोसेसिंग में मशीन लर्निंग की बेसिक जानकारी, जैसे नॉइज़ रिडक्शन, सुपर‑रिज़ॉल्यूशन और कलर मैपिंग. तीसरा, मोबाइल हार्डवेयर के साथ काम करने का अनुभव, जिसमें कैमरा मॉड्यूल इन्टेग्रेशन, सैंपलिंग रेट और फ़्रेम रेट को ऑप्टिमाइज़ करना शामिल है. इन क्षमताओं को सीखने के बाद, आप न केवल अंडर‑डिस्प्ले कैमरा के विकास को समझ पाएँगे, बल्कि भविष्य में आने वाले नई पीढ़ी के स्क्रीन‑इन‑डिस्प्ले (SID) कैमरों के लिए भी तैयार रहेंगे.
उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि अंडर‑डिस्प्ले कैमरा सिर्फ एक ट्रेंड नहीं, बल्कि एक समग्र इको‑सिस्टम का हिस्सा है जहाँ डिस्प्ले टेक्नोलॉजी, AI प्रोसेसिंग और मोबाइल डिज़ाइन का तालमेल चाहिए. नीचे आप देखेंगे कई लेख जो इस तकनीक के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं – चाहे वह LG Electronics के IPO की वित्तीय विश्लेषण हो, या क्रिकेट टॉर्नामेंट में कैमरा‑एन्हांस्ड रीप्ले का उपयोग. इन लेखों को पढ़कर आप न केवल अंडर‑डिस्प्ले कैमरा की तकनीकी बारीकियों को समझ पाएँगे, बल्कि यह भी देख पाएँगे कि इस नवाचार का असर दैनिक समाचार, मनोरंजन और वित्तीय जगत पर कैसे पड़ रहा है. चलिए, अब आगे की जानकारी में डुबकी लगाते हैं.
Samsung का Galaxy S26 Ultra जनवरी‑2026 में लॉन्च होगा, जिसमें अंडर‑डिस्प्ले सेल्फी कैमरा और 200MP सेंसर जैसे हाई‑स्पेसिफ़िकेशन हैं, कीमतों में हल्की बढ़ोतरी की उम्मीद।