सोने की कीमत इस साल इतिहास रचना कर रही है – 2025 में पहली बार $4,000 प्रति औंस के आंकड़े को तोड़ते हुए, 1979 के बाद सबसे ऊँचा स्तर छू लिया है। जे.पी. मॉर्गन के शोधकर्ता नताशा कनेवा ने यही बात अपने हालिया बयान में दोहराई, कि मौजूदा आर्थिक अनिश्चितता और केंद्रीय बैंकों की ख़रीदारी इस उछाल का मुख्य कारण है।
पृष्ठभूमि: सोना क्यों बना सुरक्षा कवच?
भूखंडीय तनाव, बढ़ती मुद्रास्फीति, और डॉलर की गिरावट ने निवेशकों को सोने की ओर धकेला है। 2024 में सोने ने $3,500 के स्तर को छू लिया था, लेकिन 2025 के शुरुआती महीनों में कीमतें 30% से अधिक बढ़ीं। इन सभी बदलावों का मूल कारण है: "सुरक्षित एकत्रीकरण" का तनावपूर्ण माहौल।
इस दौरान वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने बताया कि 2025 की पहली छमाही में वैश्विक निवेश मांग 2020 के बाद सबसे मजबूत रही।
2025 की कीमतें: रिकॉर्ड‑ब्रेकिंग स्तर
जैसे ही मई 2025 में सोना $3,326 पर था, तब से लेकर सितम्बर में $4,040 तक पहुँचा। गोल्डमैन सैक्स ने 2025 के अंत तक $3,700 का लक्ष्य रखा, जबकि जे.पी. मॉर्गन ने 2026 की दूसरी तिमाही तक $4,000 की संभावनात्मक सीमा जताई।
भारत में 10 ग्राम 24‑कैरेट सोने की कीमत लगभग ₹1,34,000 पर ठहरी, जैसा कि एविएशन A2Z ने रिपोर्ट किया।
विश्लेषकों के विचार
नताशा कनेवा ने कहा, "हमारा मानना है कि आर्थिक मंदी की संभावनाएँ और व्यापार‑टैरिफ जोखिम इस कीमत को आगे भी समर्थन देंगे।" उनका यह भाव जे.पी. मॉर्गन रिसर्च के प्रोजेक्शन में स्पष्ट है: 2025 के चौथे क्वार्टर में औसत $3,675 और 2026 के Q2 में $4,000 तक पहुंचना संभावित है।
दूसरी तरफ़, डैविड कोटोक, कोवहर्डिन ऐडवाइजिस के सह‑संस्थापक, ने कहा, "स्टॉक मार्केट और सोना दो अलग‑अलग ड्रमर पर चलते हैं – सोना भय का प्रतीक, जबकि इक्विटी आशा का।" उनका यह ब्यान निवेशकों को दोनों परिसंपत्तियों के बीच संतुलन बनाने की सलाह देता है।
सेंट्रल बैंकों की खरीदारी बूम
सितम्बर 2025 तक, विश्व भर के केंद्रीय बैंक अपने आरक्षित पोर्टफोलियो में सोने का हिस्साब 27% तक पहुँच गया। यह 1996 के बाद पहली बार है जब सोना अमेरिकी ट्रेजरी से बड़ा शेयर रखता है, और अब यह USD के बाद दूसरा सबसे बड़ा आरक्षित परिसंपत्ति बन गया है। एशिया, मध्य‑पूर्व और उभरते बाजारों के बैंक विशेष रूप से इस धातु को अपने रिज़र्व में शामिल कर रहे हैं।
इन पहलुओं के पीछे अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की 2% इन्फ्लेशन टारगेट से अधिक चार सालों की लगातार महंगाई भी है, जिसने डॉलर को कमजोर किया और सोने को विदेशी मुद्रा में सस्ते बना दिया।
उपभोक्ता और निवेशक पर असर
उच्च कीमतों के बावजूद भारतीय उपभोक्ताओं ने ज्वेल्री खरीद में थोपे गए दबाव को महसूस किया, परन्तु अमेरिका में "इंवेस्टमेंट ज्वेल्री" का ट्रेंड बढ़ रहा है – 22K‑24K की शुद्ध सोने की चेनियाँ अब दोहरी भूमिका निभा रही हैं: पहनने योग्य लक्ज़री और वैल्यू स्टोर दोनों।
इसी बीच, रिटेल निवेशक अपने प्रॉवाइडर के माध्यम से Gold IRA खोल रहे हैं, जिससे सेवानिवृत्ति बचतें धातु में सुरक्षित हो रही हैं। रिसर्च फर्म Morgan Stanley ने बताया कि अक्टूबर 2022 से सोने का मूल्य 2.5 गुना बढ़ा है और इस साल पहले दस हफ्तों में 50% की तेज़ी से वृद्धि हुई, जबकि सामान्यतः सोना जोखिम‑सेविंग एसेट माना जाता है।
भविष्य की दिशा: क्या $4,000 स्थायी रहेगा?
आगे देखते हुए, कई विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि अगर मुद्रास्फीति और भू‑राजनीतिक तनाव जारी रहे तो सुर्खियों में बने रहने का पूरी सम्भावना है। लेकिन सोने की कीमतों में उतार‑चढ़ाव अभी भी जारी रह सकता है, क्योंकि खनन कंपनियों की उत्पादन क्षमता सीमित है और ज्वेल्री मांग सस्ते विकल्पों की ओर झुकी हुई है।
सारांश में, सोना अब सिर्फ "सुरक्षित आश्रय" नहीं रहा, बल्कि एक सक्रिय निवेश उपकरण बन गया है जो स्टॉक मार्केट के साथ कभी‑कभी समान दिशा में भी चलता दिखा। निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में सोने की उचित हिस्सेदारी तय करने के साथ‑साथ, संभावित बाजार‑संकटों का भी ध्यान रखना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
सोने की कीमत $4,000 पर पहुँचने से भारतीय निवेशकों को क्या लाभ मिल सकता है?
भारतीय निवेशक इस स्तर पर सोने को सुरक्षित संपत्ति के तौर पर देख रहे हैं, इसलिए Gold IRA या सोने के ETFs में निवेश करने से उनके पोर्टफोलियो में जोखिम कम हो सकता है। उच्च कीमतें भले ही अल्पकालिक लाभ कम कर दें, लेकिन दीर्घकालिक इन्फ्लेशन से रक्षा के लिए यह मददगार रहता है।
केंद्रीय बैंकों की बढ़ती सोने की खरीदारी का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?
जब केंद्रीय बैंकों का सोने में हिस्सा 27% तक पहुँचता है, तो यह संकेत देता है कि वे डॉलर‑बेस्ड रिज़र्व से हटकर अधिक विविधीकरण चाहते हैं। इससे डॉलर की ताकत में धीरे‑धीरे कमी आ सकती है और वैश्विक मुद्रास्फीति के दबाव बढ़ सकते हैं।
क्या सोने की कीमतें आगे भी बढ़ेंगी या स्थिर होंगी?
विश्लेषकों का मानना है कि मुद्रास्फीति, भू‑राजनीतिक तनाव और फेडरल रिज़र्व की नीतियां अभी भी प्राइसिंग ड्राइवर हैं। यदि ये कारक जारी रहते हैं तो कीमतें $4,500 तक भी पहुँच सकती हैं, लेकिन खनन आपूर्ति में सुधार या बाजार‑विश्वास में बढ़ोतरी से आगे की गिरावट भी संभव है।
सुनिर्धारित निवेशक किन जोखिमों से बच सकते हैं?
सोना एक वास्तविक संपत्ति है, परंतु इसकी कीमतों में अचानक गिरावट भी हो सकती है। इसलिए निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में सोने का अनुपात 5‑10% तक सीमित रखकर, स्टॉक्स, बांड और रियल एस्टेट जैसे अन्य एसेट क्लासेज़ के साथ संतुलन बनाना चाहिए।
Shalini Bharwaj
सोने की कीमत $4,000 पर पहुँचना वाकई एक बड़ा संकेत है।
भारत में निवेशक अब अपने पोर्टफ़ोलियो को सुरक्षित करने के लिए सोने की ओर बड़े पैमाने पर देख रहे हैं।
केंद्रीय बैंकों की खरीदारी ने इस उछाल में अहम भूमिका निभाई है।
यह कदम बाजार में विश्वास की कमी को दर्शाता है।
कई लोग अब सोना एक स्थायी मूल्य संरक्षण मान रहे हैं।
अल्पकालिक लाभ कम भी लग सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक मुद्रास्फीति से बचाव में मदद मिलती है।
सोने की कीमतों में बढ़ोतरी का मतलब है कि स्थिर आय वाले निवेशकों को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
साथ ही, ज्वेलरी बाजार में भी माँग बढ़ रही है, जिससे स्थानीय कारीगरों को फायदा हो रहा है।
लेकिन उच्च कीमतों के कारण कुछ खरीदार नाराज़ भी हो सकते हैं।
सरकार के टैक्स ढांचे को भी इस बदलाव के साथ समायोजित करना चाहिए।
निवेशकों को सोने की उचित भागीदारी तय करनी चाहिए, नहीं तो जोखिम अधिक हो सकता है।
इस प्रकार, सोना अब सिर्फ एक सुरक्षित आश्रय नहीं बल्कि एक सक्रिय निवेश उपकरण बन चुका है।
मुझे लगता है कि अगले कुछ महीनों में यह प्रवृत्ति जारी रहेगी।
यदि आपको इस विषय में कोई सवाल हो तो मैं मदद करने को तैयार हूँ।
अंत में, याद रखें कि विविधीकरण हमेशा सबसे अच्छा विकल्प है।
Chhaya Pal
सोने के इस उछाल से भारतीय रीति-रिवाज़ों पर भी असर पड़ेगा।
Naveen Joshi
बिलकुल सही कहा गया है, बाजार की अस्थिरता ही मुख्य कारण है।
लोग अब सोने को सुरक्षित आश्रय मान रहे हैं।
Gaurav Bhujade
सोने की इस तेज़ी से बढ़ती कीमतों को देखते हुए कई प्रश्न उठते हैं।
क्या यह गति दीर्घकालिक बनी रहेगी या निकट भविष्य में उलट होगी?
केंद्रीय बैंक की बड़ी मात्रा में खरीदारी निश्चित रूप से बाजार को प्रभावित करती है।
निवेशकों को सावधानी से अपने पोर्टफ़ोलियो का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।
Chandrajyoti Singh
आपके प्रश्न बिल्कुल उचित हैं, और इस संदर्भ में स्पष्ट करना चाहूँगा कि कई विश्लेषकों का मत है कि यदि मौद्रिक नीति में परिवर्तन नहीं हुआ तो कीमतें ऊपर ही रहेंगी।
इसी कारण कई कंपनियों ने अपने रेज़र्व में सोने का प्रतिशत बढ़ा दिया है।
भविष्य की अनिश्चितताओं को देखते हुए, एक संतुलित निवेश रणनीति अपनाना लाभदायक रहेगा।
Riya Patil
सोना अब केवल एक धातु नहीं रहा, यह हमारी आर्थिक आशा का प्रतीक बन गया है!
जब कीमतें $4,000 की सीमा को पार करती हैं, तो हर निवेशक की धड़कन तेज़ हो जाती है।
ऐसे समय में बाजार के उतार-चढ़ाव को देखना एक रोमांचक अनुभव है।
लेकिन याद रखें, अत्यधिक उत्साह में फैसला करना हमेशा सुरक्षित नहीं होता।
naveen krishna
बिल्कुल, इस प्रवृत्ति में सभी को मिलकर समझदारी से कदम बढ़ाना चाहिए 😊।
यदि हम अपनी रणनीतियों को साझा करेंगे तो जोखिम कम होगा और रिटर्न बेहतर हो सकता है।
Disha Haloi
देश की आर्थिक सुरक्षा के लिए सोने के इस बढ़ते मूल्य को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
यह हमें दिखाता है कि विदेशी मुद्रा पर हमारी निर्भरता कम कर, स्वदेशी धन को सुदृढ़ करना कितना आवश्यक है।
ऐसे में सरकार को अधिक प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।
Mariana Filgueira Risso
सही कहा, हमें इस अवसर को राष्ट्रीय आर्थिक पहल के रूप में देखना चाहिए।
निवेशकों को सोने के वैरायटी वाले फंड्स में हिस्सा लेना चाहिए, जिससे पोर्टफ़ोलियो में विविधता आ सके।
साथ ही, छोटे निवेशकों को बाजार की अस्थिरता से बचाने के लिए शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।