नारायण मूर्ति द्वारा शादी की 25वीं वर्षगांठ पर विशेष घटना का खुलासा

नारायण मूर्ति और उनके परिवार का दिल जीतने वाला किस्सा

जब बात हो भारतीय आईटी क्रांति की तो शायद ही कोई इनफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति का नाम भूल सकता है। लेकिन इस बार जब उन्होंने अपने ही जीवन के विशेष क्षण को भूल कर बैठे, तो उनकी बेटी अक्षता मूर्ति ने उन्हें याद दिलाया कि पारिवारिक रिश्तों की अहमियत कभी कम नहीं होनी चाहिए। नारायण मूर्ति ने दिल को छूने वाली यह याद साझा की कि कैसे वह अपनी 25वीं शादी की वर्षगांठ भूल गए थे।

अक्षता मूर्ति का परिहार्य व्यवहार

नारायण मूर्ति की बेटी, अक्षता मूर्ति, जिन्हें हम यू.के. के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की धर्मपत्नी के रूप में भी जानते हैं, जब उन्हें इस बारे में पता चला कि उनके पिता इस यादगार दिन को भूल गए हैं, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। अक्षता के दिल में अपने पिताजी के लिए अत्यधिक सम्मान और प्रेम है। उन्होंने तुरंत अपने पिता को याद दिलाया और कहा कि इस विशेष अवसर पर एक निजी विमान लेकर बेंगलुरु लौट आएं।

अक्षता का यह व्यवहार उनके दया और समझदारी का प्रतीक था। उन्होंने अपने पिता को एहसास कराया कि करियर के दौरान भी परिवार के लिए समय निकालना जरूरी है। उनकी यह सलाह केवल एक पोती द्वारा दिए गए आदर्श की नहीं थी, बल्कि यह उन्हें यह समझाने का प्रयास था कि रिश्ते भी काम के समान ही महत्वपूर्ण हैं।

पारिवारिक बंधन की महत्वपूर्णता

यह घटना पिता-पुत्री के बंधन को दर्शाती है। यह केवल किसी बोल-चाल का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में पारिवारिक सद्भाव बनाए रखने की याद दिलाता है। नारायण मूर्ति की प्रतिक्रिया से भी हमें यह हिसाब आता है कि अहम क्षणों को बचा लेना महत्वपूर्ण होता है, चाहे ऐसा करने में कुछ बदलाव या कठिनाई ही क्यों न आनी पड़े।

अक्षता के इस व्यवहार से यह भी जानने को मिलता है कि किसी भी व्यस्तता या सफल करियर के बावजूद पारिवारिक दायित्व की अहमियत को भूला नहीं जा सकता। उनके इस प्रेम भरे कदम से यह स्पष्ट हो जाता है कि नारायण मूर्ति और अक्षता मूर्ति का रिश्ता गहराई भरा और भावनात्मक रूप से समृद्ध है।

संक्षेप में - जीवन में रिश्तों की महत्वपूर्णता

संक्षेप में - जीवन में रिश्तों की महत्वपूर्णता

हमारे जीवन में रिश्तों की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चाहे आप कितने भी व्यस्त क्यों न हों, अपने परिवार के लिए समय निकालना और उनके साथ खुशियों के पल साझा करना जरूरी है। यह नारायण मूर्ति और उनकी बेटी अक्षता मूर्ति की घटना हमें सिखाती है कि खुशी का मापदंड कभी भी किसी एक पहलू पर आधारित नहीं होता।

इसमें संदेह नहीं है कि नारायण मूर्ति और उनकी बेटी अक्षता मूर्ति का संबंध एक मजबूत और प्रगाढ़ रिश्ता है, जो समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। इस कहानी से हम संकल्प ले सकते हैं कि पारिवारिक प्रेम और bंधन जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता की चाबी है।

नीरजा कौल

नीरजा कौल

मैं एक पेशेवर पत्रकार हूं और भारत में दैनिक समाचारों पर लेख लिखती हूं। मेरी खास रुचि नवीनतम घटनाओं और समाज में हो रहे परिवर्तनों पर है। मेरा उद्देश्य नई जानकारी को सरल और सटीक तरीके से प्रस्तुत करना है।