बांग्लादेश में छात्रों के प्रदर्शन के बाद विश्वविद्यालय अनिश्चितकाल के लिए बंद

बांग्लादेश में कोटा प्रणाली के खिलाफ उभरा छात्र असंतोष

बांग्लादेश में हाल ही में कोटा प्रणाली के खिलाफ छात्रों का विरोध अचानक हिंसक हो गया। इस विरोध के चलते सरकार ने सभी सार्वजनिक और निजी विश्वविद्यालयों को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया है। छात्रों का यह विरोध कई हफ्तों से जारी था, लेकिन पिछले दिनों प्रधानमंत्री शेख हसीना की ओर से उनकी मांगों को अस्वीकार किए जाने के बाद इसमें और उग्रता आ गयी। दरअसल, सरकार की कोटा प्रणाली के तहत सरकारी नौकरियों का 30% हिस्सा 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के परिवारों के लिए आरक्षित है।

प्रदर्शन में शत्रुबोध और हिंसा

छात्रों का कहना है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है और सरकारी नौकरियों में उन्हें प्रवेश की सही संभावनाएं नहीं मिल पा रही हैं। प्रधानमंत्री हसीना ने अपने बयान में विरोधियों को ‘रजाकार’ कहकर संबोधित किया, जो एक अपमानजनक शब्द है। इसे उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिन्होंने 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना का सहयोग किया था। इस बयान ने विरोध प्रदर्शनों को और भड़का दिया।

मंगलवार को हुए झड़पों में छह लोगों की मौत हो गई, जिनमें कम से कम तीन छात्र शामिल थे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए रबर की गोलियों और आंसू गैस का उपयोग किया। अमनेस्टी इंटरनेशनल ने सरकार से आग्रह किया है कि वो शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और घायलों को उचित इलाज मुहैया कराए।

सरकार की कठोर सुरक्षा व्यवस्था

स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए अधिकारियों ने विश्वविद्यालय परिसरों में दंगा पुलिस और अर्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सभी विश्वविद्यालयों को तत्काल प्रभाव से बंद करने और छात्रों को सुरक्षा कारणों से परिसर खाली करने का निर्देश दिया है। हाई स्कूल और कॉलेज भी एहतियातन बंद कर दिए गए हैं।

बुधवार को छात्रों ने मारे गए लोगों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए ताबूतों के साथ जुलूस निकालने का का निर्णय लिया है। ये प्रदर्शन शेख हसीना की सरकार का पुनः चुनाव के बाद पहला प्रमुख विरोध हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि देश में स्थिर निजी क्षेत्र वृद्धि के चलते सरकारी नौकरियों की मांग बढ़ रही है, क्योंकि ये नौकरियाँ नियमित वेतन वृद्धि और अन्य सुविधाएं प्रदान करती हैं।

बांग्लादेश की कोटा प्रणाली पर एक नजर

बांग्लादेश की कोटा प्रणाली पर एक नजर

वर्तमान में बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों का 56% हिस्सा विभिन्न कोटाओं के तहत आरक्षित है, जिसमें 10% महिलाओं के लिए, 10% पिछड़े जिलों के लोगों के लिए, 5% आदिवासी समुदाय और 1% दिव्यांगों के लिए आवंटित है। इन कोटाओं के चलते सामान्य श्रेणी के छात्रों को काफी कठिनाई होती है और इसी मुद्दे ने इस बार के आंदोलन की नींव रखी।

प्रदर्शन का विस्तार

महत्वपूर्ण यह है कि यह प्रदर्शन केवल एक विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है। यह आंदोलन देश के हर बड़े शहर और शैक्षणिक संस्थानों तक पहुंच गया है। विभिन्न राजनीतिक दलों के छात्र संघ भी इसमें भाग ले रहे हैं। हालांकि, कुछ समूहों द्वारा उत्पन्न हिंसा ने इस आंदोलन की गंभीरता को और बढ़ा दिया है।

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया

सरकार की ओर से मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए प्रधानमंत्री शेख हसीना ने विरोधियों के साथ बातचीत के लिए अपने दरवाजे खुले रखने का भरोसा दिया है। लेकिन साथ ही उन्होंने साफ कर दिया है कि कोटा प्रणाली को पूरी तरह से समाप्त करना संभव नहीं है, क्योंकि यह स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों और अन्य पिछड़े वर्गों के साथ न्याय के लिए आवश्यक है।

ऐसे परिप्रेक्ष्य में देखने से स्पष्ट होता है कि सरकार और छात्र समुदाय के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए संवाद ही एकमात्र मार्ग है। लेकिन अगर दोनों पक्ष इतने कठोर रवैया अपनाते रहेंगे तो स्थिति और खराब हो सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार कोई संतुलित नीति अपनाती है या फिर छात्रों का यह विरोध नए आयाम लेता है।

नीरजा कौल

नीरजा कौल

मैं एक पेशेवर पत्रकार हूं और भारत में दैनिक समाचारों पर लेख लिखती हूं। मेरी खास रुचि नवीनतम घटनाओं और समाज में हो रहे परिवर्तनों पर है। मेरा उद्देश्य नई जानकारी को सरल और सटीक तरीके से प्रस्तुत करना है।