जब आप सहेजते या उधार लेते हैं, तो ब्याज़ दर आपके पैसे की लागत तय करती है। आसान शब्दों में कहें तो, यह वह प्रतिशत है जो आपको बैंक को देना पड़ता है या बैंक आपको देता है। भारत में इस पर RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) का बड़ा असर रहता है, इसलिए हर बार जब RBI अपनी नीति बदलती है, तो आम लोगों की जेब में भी फर्क पड़ता है।
रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI बैंकों को लोन देता है। जब रेपो रेट कम होती है, तो बैंक सस्ती रकम उधार ले सकते हैं और आप तक वो कम ब्याज में पहुंचती है। वहीं अगर रेपो बढ़े, तो बचत खाता की दरें भी आम तौर पर ऊपर आती हैं, लेकिन कर्ज़ के लिए ब्याज महंगा हो जाता है। हाल ही में RBI ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) में जो बदलाव किया, वह खासकर लघु व्यवसायों और गृह ऋणधारकों को प्रभावित करता है।
बैंक अलग‑अलग प्रकार के खातों पर अलग‑अलग ब्याज देते हैं। बचत खाता आम तौर पर 3%‑4% सालाना देता है, जबकि फिक्स्ड डिपॉज़िट (FD) की अवधि बढ़ने पर दर भी बढ़ती है—6 महीने से लेकर 10 साल तक। यदि आप छोटे समय के लिए पैसा लगाते हैं तो बैंक अक्सर प्रीमियम रेट देती है, जिससे आपके बचत में थोड़ा अतिरिक्त मिल सकता है। लेकिन ध्यान रखें, FD जल्दी निकाले तो पेनल्टी लागू हो सकती है।
अब बात करते हैं वो चीज़ जो कई लोग भूल जाते हैं—कर्ज़ की ब्याज दरें। घर खरीदने के लिए लोन, कार लोन या व्यक्तिगत कर्ज़—इन सभी पर अलग‑अलग रेट लगती है। अक्सर बैंक अपने बेस रेट (बेसिक बायड) में मार्क-अप जोड़कर अंतिम दर तय करते हैं। अगर आपका क्रेडिट स्कोर अच्छा है तो आप कम मार्जिन पर कर्ज़ ले सकते हैं, इसलिए अपनी क्रेडिट रिपोर्ट को साफ रखना फायदेमंद रहता है।
क्या आपके पास कई बैंक खातें हैं? तब आपको हर एक की दरों को ट्रैक करना ज़रूरी है। ऑनलाइन बैंकों में अक्सर कम ओवरहेड्स होते हैं, इसलिए उनकी ब्याज दरें बड़े पारंपरिक बैंकों से थोड़ी अधिक हो सकती हैं। अगर आप अपनी बचत को बढ़ाना चाहते हैं तो सबसे पहले इन दोनों के बीच तुलना कर देखें कि कौन सी योजना आपके लिए बेहतर है।
ब्याज़ दरों की खबरें सिर्फ RBI या बड़ी वित्तीय पोर्टल्स पर नहीं, बल्कि छोटे स्थानीय समाचारपत्रों में भी आती हैं। शिन्दे आमवाले जैसी साइटें आपको रोज़ाना अपडेट देती हैं, जिससे आप कभी पीछे न रहें। जब भी नई नीति आए, तो तुरंत अपने बैंक से संपर्क करके अपनी डिपॉज़िट या लोन प्लान को रिव्यू करें। यही तरीका है बैंकों की बदलती दरों का फायदा उठाने का।
अंत में एक छोटी सी सलाह—ब्याज़ दरें अक्सर महीने के अंत में बदल सकती हैं, इसलिए हर 15‑30 दिन पर अपनी बैंक स्टेटमेंट देखना अच्छा रहेगा। अगर आप किसी नई योजना में स्विच करना चाहते हैं तो समय-समय पर प्रमोशनल ऑफ़र भी मिल सकते हैं, जैसे पहले तीन महीनों में बढ़ी हुई बचत दर या कम लोन प्रोसेसिंग फीस। इन छोटी‑छोटी चीज़ों को नोट करके आप अपने वित्तीय लक्ष्य जल्दी हासिल कर सकते हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने ऋण और जमा वृद्धि के अंतर पर जोर दिया। यह अंतर आरबीआई की मौद्रिक नीति के निर्णयों के लिए महत्वपूर्ण है। गवर्नर ने बताया कि छोटे ऋणों पर ब्याज़ दरें अत्यधिक हैं। यह लेख ग्राहकों के हितों को प्राथमिकता देने के लिए आरबीआई की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।