जब आप भारत के बाजार में चलते हैं तो रंग‑बिरंगे कपड़े आँखों को तुरंत पकड़ लेते हैं। ये सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति की कहानी कहते हैं। हर राज्य का अपना अनूठा पोशाक है – साड़ी, धोती, लहंगा या कुर्ता – जो मौसम, त्यौहार और सामाजिक स्थिति के हिसाब से बदलता रहता है.
साड़ी को अक्सर भारतीय महिलाओं की पहचान माना जाता है। इसे लगभग सात सौ साल पुराना कहा जाता है और हर प्रदेश में इसका अलग‑अलग डिज़ाइन, बनावट और रंग मिलता है. बंगाल की टिंकटिन, पंजाब का पंजाबी साड़ी या राजस्थानी बँधणी – सबकी कहानी अलग है। सादी साड़ी को ढीला पहनना आसान होता है, लेकिन सही तरीके से बांधने के लिए कुछ अभ्यास चाहिए.
धोती पुरुषों की पारंपरिक पसंद है, खासकर उत्तर भारत और ग्रामीण इलाक़ों में. इसे कपड़े की एक लम्बी बैन पर पैरों के चारों ओर लपेटा जाता है, फिर ऊपर से कुर्ता या शर्ट पहनी जाती है. शादी‑विवाह या धार्मिक समारोह में धोती को अक्सर कढ़ाई वाले बॉर्डर और चमकीले रंगों से सजाया जाता है.
लहंगा खासकर शादी और बड़े फंक्शन के लिए तैयार किया जाता है। यह तीन हिस्से – लुंगी, चोली और दुपट्टा – मिल कर बनता है. राजस्थान, गुजरात और पंजाब में लहंगे की अलग‑अलग शैली देखी जा सकती है, जैसे कि गोटा पत्ती वाले झाड़े या ज़री के काम वाले डिज़ाइन.
दैनिक जीवन में अधिकांश लोग कुर्ता‑पायजामा या सलवार‑कमीज़ चुनते हैं क्योंकि ये आरामदेह और आसान होते हैं. लेकिन त्यौहार के दिन, जैसे दीवाली, होली या ईद, लोग अक्सर साड़ी, लहंगा या शेरवानी पहनना पसंद करते हैं.
शादी में दूल्हे को अक्सर शेरवानी या सूट पहने देखा जाता है। यह परिधान राजस्थानी और पंजाबी संस्कृति का मिश्रण है – चमकदार बॉर्डर, कढ़ाई और कभी‑कभी पैंट की जगह धोती भी आती है.
अगर आप कोई खास अवसर के लिए कपड़ा चुन रहे हैं तो मौसम को ध्यान में रखें। गर्मियों में हल्के कॉटन या लिंन वाले साड़ी/धोती आराम देंगे, जबकि शरद और सर्दी में ऊनी या रेशमी कपड़े बेहतर होते हैं.
आजकल कई डिजाइनर इन पारंपरिक वस्त्रों को आधुनिक कट के साथ पेश कर रहे हैं. जैसे कि हाई‑लैपेल कुर्ता पर हल्का एम्ब्रॉयडरी, या साड़ी के साथ जैंस पैंट – ये सब शैली में नई ऊर्जा लाते हैं.
भारी कढ़ाई या ज़री का काम देखने वाले कपड़े को संभालकर रखना चाहिए. धुलाई की जगह ड्राय‑क्लीनिंग बेहतर होती है, और अगर आप खुद ही धोना चाहते हैं तो ठंडे पानी में हल्के डिटर्जेंट से धीरे‑धीरे हाथ से साफ करें.
सारांश में, भारतीय पारंपरिक परिधान सिर्फ कपड़े नहीं बल्कि एक भावना है. हर थ्रेड में इतिहास बसा है और प्रत्येक अवसर के साथ ये नया रंग लेता है. जब आप अगली बार साड़ी या धोती पहनें तो सोचिए – यह सिर्फ फैशन नहीं, आपके पूर्वजों की विरासत भी है.
रतनइंडिया इंटरप्राइजेज ने अपने नए भारतीय पारंपरिक परिधान ब्रांड 'कलाांज' को लॉन्च किया है। यह कदम कंपनी के इलेक्ट्रिक वाहन और अन्य क्षेत्रों के बाहर के बाजार में प्रवेश को दर्शाता है। इस ब्रांड का उद्देश्य महिलाओं के लिए विविध प्रिंट और शैलियों की पेशकश कर विभिन्न ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रखना है। यह लॉन्च भारतीय एथनिक वियर के बढ़ते मांग को ध्यान में रखते हुए एक रणनीतिक कदम है।