फ्रांस के बाहरी क्षेत्रों और विदेशों में रह रहे प्रवासियों ने संसदीय चुनाव के दूसरे चरण के मतदान की शुरुआत कर दी है। यह चुनाव संभावित रूप से राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी आंदोलन को ऐतिहासिक जीत दिला सकता है। मरीन ले पेन की नेतृत्व वाली 'नेशनल रैली' पार्टी ने 30 जून को हुए पहले दौर के मतदान में बढ़त हासिल की थी। चुनाव का यह दूसरा चरण 6 जुलाई को सेंट-पियरे-एट-मिकेलॉन जैसे क्षेत्रों में शुरू हुआ और यह फ्रांस के कैरिबियाई, साउथ पैसिफिक, और इंडियन ओशन क्षेत्रों में भी जारी रहेगा, साथ ही विदेशों में रह रहे फ्रांसीसी प्रवासियों के लिए भी।
इस बार के चुनाव पर लोगों की विशेष नजरें इसलिए भी हैं क्योंकि इसके नतीजे फ्रांस की राजनीति को एक नई दिशा दे सकते हैं। अभी के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की 'सेंट्रिस्ट एलायंस' को पहले दौर में तीसरा स्थान मिला है, जबकि लेफ्ट और ग्रीन पार्टियों की एक गठबंधन दूसरे स्थान पर है। हाल के दिनों में 'नेशनल रैली' का समर्थन तेजी से बढ़ा है और वे इस बार बहुमत हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं।
नेशनल रैली पार्टी, आप्रवासन को फ्रांस के अनेक समस्याओं का कारण मानते हुए, इस बार अपनी नीतियों को और सख्त करने का इरादा रखती है। अगर वे बहुमत हासिल करने में सफल होते हैं, तो पार्टी के नेता जॉर्डन बार्डेला प्रधानमंत्री बन सकते हैं। इसका मतलब होगा कि फ्रांस की कई महत्वपूर्ण नीतियों में बदलाव आ सकता है, खासकर कानून व्यवस्था और यूक्रेन के प्रति नीति में।
इसके अतिरिक्त, प्री-इलेक्शन पोल्स के अनुसार, नेशनल रैली पार्टी सबसे अधिक सीटें जीतने की संभावना रखती है लेकिन अभी भी 289 सीटों के बहुमत से कम रह सकती है, जिससे फ्रांस की संसद में एक विभाजित स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस्तीफा नहीं देंगे और 2027 तक का कार्यकाल पूरा करेंगे, चाहे चुनाव का परिणाम कुछ भी हो। लेकिन यह भी तय है कि उनकी राजनीतिक स्थिति पर इसका प्रभाव पड़ेगा और उनकी सत्ता कमजोर हो सकती है। निर्वाचन क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि फ्रांस की राजनीति इस चुनाव के नतीजों के बाद एक नयी दिशा ले सकती है।
फ्रांस के राजनीतिक परिदृश्य का ये चुनाव विश्लेषण इस बात की ओर इशारा करता है कि आगे का समय काफी महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण होगा। चुनाव परिणाम और उसके प्रभाव से ही आगे की राजनीतिक धारा निर्धारित होगी।