गोरखपुर के दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के मैदान पर सोमवार, 1 नवंबर 2025 को सुबह 10 बजे, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर पुस्तक महोत्सव 2025 का औपचारिक रूप से शुभारंभ किया। यह नौ दिवसीय साहित्यिक उत्सव, जो 9 नवंबर तक चलेगा, राष्ट्रीय पुस्तक निगम द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की साझेदारी है। शुरुआत के साथ ही लाखों लोग यहां पहुंचे — किताबों की दुकानों के सामने लंबी कतारें लग गईं, और बच्चों के लिए बनाए गए कोने में उनकी हंसी-खुशी गूंज रही थी।
महोत्सव के तीन बड़े हिस्सों में से एक, बाल मंडप, वाकई एक छोटे बच्चे के लिए जादू का स्थान बन गया है। यहां बच्चे रंग-बिरंगी किताबों के साथ खेलते हैं, नाटक देखते हैं, और अपनी पसंद की कहानियां बनाते हैं। विश्वविद्यालय की वाइस-चैन्सलर पूनम तंदन ने बताया कि पिछले चार सालों में यहां आने वाले बच्चों की संख्या 200% बढ़ी है। अब यहां आने वाले 40% आगंतुक 12 साल से कम उम्र के हैं। एक छोटी लड़की, जिसने अपनी पहली किताब ‘चाँद और बिल्ली’ खरीदी, बोली — “मम्मी, ये किताब तो मेरी दोस्त बन गई!”
साहित्यिक मंडप में हर दिन नए लेखक, कवि और समालोचक आते हैं। लेकिन तीसरे दिन, 3 नवंबर को, जो हुआ, वह किसी के लिए भूलने योग्य नहीं था। दो कथावाचकों ने रामायण की पूरी कहानी एक ऐसे अंदाज में सुनाई, जैसे कोई जीवित चित्र बन रहा हो। LED पर राम के रथ का आगमन, लहराते हुए बालों के साथ कथक नृत्य, और दर्शकों के चेहरों पर आंखों में आंसू — यह सब मिलकर एक ‘मन का नाटक’ बन गया। राष्ट्रीय पुस्तक निगम के निदेशक यूवराज मलिक ने कहा, “हम बस किताबें बेच नहीं रहे, हम अनुभव बेच रहे हैं।”
महोत्सव में 100 से अधिक प्रकाशकों के 200 से ज्यादा स्टॉल्स हैं — हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बिहारी, अवधी, भोजपुरी सहित कई भाषाओं की किताबें। हर किताब पर 10% छूट दी जा रही है — यह एक समान नीति है, जिसे किसी भी प्रकाशक ने नहीं बदला। एक छोटा प्रकाशक, जिसका नाम ‘साहित्य संगम’ है, बता रहा था कि उनकी एक छोटी सी कविता की किताब, जो पिछले साल बिकी नहीं, आज दो घंटे में 300 प्रतियां बिक गईं।
गोरखपुर में यह बात अक्सर कही जाती है — “यहां ज्ञान की दुकानें खुली रहती हैं।” यह महोत्सव इसी विरासत को नई ऊर्जा दे रहा है। पिछले वर्षों में यहां आए लोगों की संख्या 2019 में 1.2 लाख थी, 2023 में 2.1 लाख, और 2025 में अनुमान 3.5 लाख के पार पहुंच चुका है। यह उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में साहित्य की एक जीवित परंपरा बन गया है।
9 नवंबर को शाम 7:30 बजे, आखिरी दिन के अंत में, एक विशेष समारोह होगा। यहां एक युवा लेखक को राष्ट्रीय पुस्तक निगम की ओर से ‘युवा साहित्यकार पुरस्कार’ दिया जाएगा — जिसे पिछले दो सालों में गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने जीता है। यह एक संकेत है कि यह महोत्सव सिर्फ किताबें बेचने का नहीं, बल्कि नए आवाज़ों को जन्म देने का भी अवसर है।
यह महोत्सव 2017 में शुरू हुआ था, जब विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों ने एक छोटा सा किताब बाजार लगाया था। आज वही जगह देश के बड़े प्रकाशकों के लिए एक जरूरी मंच बन गई है। 2020 में कोविड के दौरान इसे ऑनलाइन किया गया था, लेकिन आज वापसी के साथ लोगों की भीड़ और भी ज्यादा है। जैसे कोई पुराना पेड़ फिर से फूल रहा हो — जड़ें मजबूत हैं, और शाखाएं आकाश की ओर बढ़ रही हैं।
यह महोत्सव राष्ट्रीय पुस्तक निगम द्वारा प्रमुख रूप से आयोजित किया जा रहा है, जिसकी सहायता उत्तर प्रदेश सरकार और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय कर रही है। यह एक सालाना आयोजन है, जिसका उद्देश्य साहित्य को जनता तक पहुंचाना है।
200 से अधिक स्टॉल्स पर हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बिहारी, अवधी, भोजपुरी, मैथिली और तमिल सहित कम से कम 12 भाषाओं की किताबें उपलब्ध हैं। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के लिए एक अलग सेक्शन बनाया गया है।
बाल मंडप में रंगों के साथ कहानियां सुनाने के अलावा, बच्चे अपनी कहानियां लिख सकते हैं, किताबों को रंग सकते हैं, और लाइव कार्टून नाटक देख सकते हैं। यहां आने वाले 80% बच्चे नई किताबें खरीदते हैं — जो पिछले साल 55% थे।
हां, विश्वविद्यालय के छात्रों और युवा लेखकों के लिए एक अलग स्टॉल जारी किया गया है, जहां उनकी किताबें बिना किसी शुल्क के प्रदर्शित की जा सकती हैं। इस बार 47 नए लेखकों की किताबें दिखाई जा रही हैं, जिनमें से 12 की किताबें पहले ही बिक चुकी हैं।
अनुमानित रूप से, इस महोत्सव के दौरान 1.8 करोड़ रुपये की किताबें बिकने की उम्मीद है। इसके अलावा, लगभग 5,000 लोगों को अस्थायी रोजगार मिला है — स्टॉल बनाने वाले, सुरक्षा कर्मचारी, और स्थानीय व्यापारियों को भी लाभ हुआ है।
हां, यह एक स्थायी सांस्कृतिक परंपरा बन चुका है। राष्ट्रीय पुस्तक निगम और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने पहले ही 2026 के लिए तैयारी शुरू कर दी है — जिसमें अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों को शामिल करने की योजना है।