जब डॉ. अंजलि शर्मा, स्कूल ऑफ नर्सिंग की डीन डेव भूमि उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय ने 10 अक्टूबर 2025 को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के तहत एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया, तो देहरादून के कैंपस में उपस्थित सभी को इस बात का अहसास हुआ कि आपदा और आपातकाल में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव कितना खतरनाक हो सकता है। यह कार्यक्रम विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2025देहरादून, उत्तराखण्ड के आधिकारिक थीम ‘सेवाओं तक पहुँच – आपदा एवं आपातकाल में मानसिक स्वास्थ्य’ के तहत आयोजित किया गया।
पहल का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
डेव भूमि उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय ने 2018 से हर साल इस दिन को मनाया है, लेकिन 2025 का थीम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य ‘World Federation for Mental Health’ द्वारा निर्धारित था। पिछले वर्षों में ‘Mental Health for All: Greater Investment, Greater Access’ (2022) और ‘Mental Health is a Universal Human Right’ (2023) जैसे विषयों पर चर्चा हुई थी। इस निरंतरता ने छात्रों और फैकल्टी के बीच मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को धीरे‑धीरे बढ़ाया है।
कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ
सेमिनार हॉल, पहला तल, मुख्य भवन में 11:00 बजे से शुरू हुए कार्यक्रम में 127 नर्सिंग छात्र और 15 faculty सदस्य शामिल हुए। छात्रों ने तनाव, बर्न‑आउट और स्व‑देखभाल के महत्व को दर्शाने के लिए एक थीमेटिक स्किट और माइम एक्ट प्रस्तुत किया। साथ ही पोस्टर‑मेकिंग प्रतियोगिता (43 प्रतिभागी), पत्थर कला इंस्टॉलेशन (28 छात्र), माइंड‑गेम्स (65 सहभागियों) और 12 समूहों के सांस्कृतिक प्रदर्शन ने इस आयोजन को रंगीन बना दिया।
अतिथि वक्ता एवं कार्यशालाएँ
उत्ताखण्ड राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण के प्रतिनिधियों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजेश वर्मा (प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर) ने ‘आपदा परिस्थितियों में आपातकालीन मानसिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया प्रणाली’ पर प्रस्तुति दी, जबकि प्रिया जोशी (कम्युनिटी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ) ने ‘संकट के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों में लचीलापन निर्माण’ पर प्रकाश डाला। दोनों ने स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों को भी साझा किया, जिसमें बताया गया कि 2024 में केवल 12% जनसंख्या के पास विशेषीकृत मानसिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध है।
कैंपस के काउंसिलिंग सेंटर की पेशेवर टीम ने तनाव‑प्रबंधन, माइंडफुलनेस और विश्राम‑तकनीकों पर कार्यशालाएँ चलाइँ। कुल 32 छात्रों ने तत्काल काउंसिलिंग बूथ से परामर्श किया, और 17 ने फॉलो‑अप के लिये पंजीकरण कराया। डॉ. संजय कुमार, मानद मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक, ने कहा, “पिछले वर्ष के इसी कार्यक्रम के बाद काउंसिलिंग आँकड़ों में 40% की बढ़ोतरी देखी गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि निरंतर जागरूकता की आवश्यकता है।”
प्रभाव और आँकड़े
- 150 WHO‑इंडिया द्वारा तैयार किए गए मानसिक स्वास्थ्य सूचना पैम्फलेट वितरित किए गए।
- ग्रैटिट्यूड वॉल पर 89 व्यक्तिगत संदेश लिखे गये।
- स्ट्रेंथ स्पॉटलाइट जर्नलिंग स्टेशन का उपयोग 76 छात्रों ने किया।
- विश्व स्तर पर WHO का आंकड़ा: लगभग 970 मिलियन लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हैं, और डिप्रेशन‑एन्क्जायटी की लागत हर साल $1 ट्रिलियन से अधिक है।
- संयुक्त राष्ट्र के सचिव‑जनरल एंटोनियो गुटर्रेस ने 2023 में कहा था, “हर आठ में से एक व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से जूझता है; महिलाओं और युवाओं पर इसका असर अधिक है।”
उत्ताखण्ड में 10.1 मिलियन जनसंख्या के लिये सिर्फ 32 साईकियाट्रिस्ट उपलब्ध हैं, जो दर्शाता है कि ‘सेवाओं तक पहुँच’ का महत्व इस वर्ष के थीम में क्यों दोहराया गया।
आगे की योजनाएँ
डॉ. अंजलि शर्मा ने विश्वविद्यालय की नई पहल का खुलासा किया: “जनवरी 2026 से हम सभी स्वास्थ्य छात्रों के लिये एक स्थायी ‘मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड’ प्रमाणन कार्यक्रम शुरू करेंगे। विश्वविद्यालय ने इस कार्यक्रम के लिये वार्षिक स्वास्थ्य बजट में ₹2.5 मिलियन आवंटित किए हैं, जिससे अगले 12 महीनों में 200 छात्रों व स्टाफ को प्रमाणित मेंटल हेल्थ फर्स्ट रिस्पॉन्डर बनाया जायेगा।” यह कदम न केवल छात्र‑समुदाय को बल्कि स्थानीय स्वास्थ्य प्रणाली को भी सुदृढ़ करेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2025 का थीम क्या था?
इस वर्ष का थीम ‘सेवाओं तक पहुँच – आपदा एवं आपातकाल में मानसिक स्वास्थ्य’ था, जिसका उद्देश्य आपदा के समय मानसिक स्वास्थ्य सहायता की जरूरत पर प्रकाश डालना था।
किसे इस कार्यक्रम में सबसे अधिक लाभ हुआ?
मुख्य रूप से नर्सिंग छात्रों को लाभ हुआ; उन्होंने तनाव प्रबंधन के व्यावहारिक कौशल सीखा और सीधे काउंसिलिंग बूथ से सहायता प्राप्त की।
उत्ताखण्ड में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की वर्तमान स्थिति क्या है?
2024 के आंकड़ों के अनुसार, केवल 12% जनसंख्या को विशेषीकृत सेवाएँ मिलती हैं, और राज्य में केवल 32 साईकियाट्रिस्ट उपलब्ध हैं, जिससे सेवा‑अभाव की स्पष्ट तस्वीर मिलती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस कार्यक्रम में क्या योगदान दिया?
WHO‑इंडिया ने 150 सूचना पैम्फलेट तैयार किए, जिससे प्रतिभागियों को विश्व स्तर पर मान्य मानसिक स्वास्थ्य टिप्स और संसाधन प्रदान किए गए।
भविष्य में विश्वविद्यालय कौन‑सी नई पहल करेगा?
जनवरी 2026 से सभी स्वास्थ्य छात्रों के लिए ‘मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड’ प्रमाणन कार्यक्रम शुरू किया जाएगा, जिसमें 200 छात्र‑स्टाफ को प्रशिक्षित कर प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे।
Manu Atelier
मानसिक स्वास्थ्य के आपातकालीन पहलुओं पर चर्चा करना न केवल आवश्यक है बल्कि एक दार्शनिक दायित्व भी है। इस पहल में प्रस्तुत आँकड़े दर्शाते हैं कि सेवाओं की कमी मानव जीवन को जोखिम में डालती है। अतः, ऐसी कार्यक्रमों को स्थायी ढाँचे में बदलना चाहिए, नहीं तो यह केवल एक बार का उत्सव रहेगा।
Vaibhav Singh
ऐसी पहल केवल दिखावे तक सीमित है।
Aaditya Srivastava
देहरादून की हवा में हमेशा से ही परिवर्तन का ज़ायका रहा है, और अब मानसिक स्वास्थ्य को भी इस परिवर्तन में शामिल किया जा रहा है। यह देखना दिलचस्प है कि स्थानीय सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को भी इस चर्चा में जगह मिल रही है।
Vaibhav Kashav
ओह, वैभव सिंह की शिकायत तो बड़ी ही रोचक है-जैसे ही हम एक कदम आगे बढ़ाते हैं, वही लोग पीछे हटते दिखते हैं। फिर भी, आपके जैसा सतही विश्लेषण इस मुद्दे को हल नहीं करेगा।
Danwanti Khanna
आह! कितना उत्साही अंदाज़ है, आदित्य जी! हम सब आपके सांस्कृतिक दृष्टिकोण को सराहते हैं!! इस पहल में भाग लेकर हम सबकी जिम्मेदारी बनती है।
Hrishikesh Kesarkar
डेटा यह कहता है कि 12% ही सेवा पाते हैं, इसलिए व्यवस्थित प्रशिक्षण अनिवार्य है। यही कारण है कि प्रमाणन कार्यक्रम जरूरी है।
Anu Deep
सही बात है डाटा को देख कर हमें जल्दी से जल्दी ट्रेनिंग शुरू करनी चाहिए क्योंकि ये बहुत ज़रूरी है
Preeti Panwar
आप सभी की मेहनत वास्तव में काबिले‑तारीफ है 😊! इस तरह के प्रयासन से छात्रों में मानसिक लचीलापन जरूर बढ़ेगा। चलिए साथ मिलकर इस दिशा में आगे बढ़ते हैं।
MANOJ SINGH
Ye program bilkul useless lagta h, kyu ki isme koi asar nhi dikhta. Badhia kaam nhi hua isme.
harshit malhotra
देखिए, जब तक हम इस बात को नहीं समझते कि मानसिक स्वास्थ्य एक सामाजिक बुनियाद है, तब तक कोई भी नीति केवल कागज़ पर लिखी हुई रह जाएगी। सबसे पहले यह तथ्य कि केवल 32 साईकियाट्रिस्ट पूरे उत्तराखण्ड के लिए उपलब्ध हैं, इस बात को उजागर करता है कि हम कितने धुंधले में हैं। यह समस्या सिर्फ संख्याओं की नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन के उन मनों की है जो रोज़मर्रा की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। जब एक छात्र तनाव से परे हो जाता है, तो उसका शैक्षणिक प्रदर्शन गिरता है, और वह संभावित रूप से अपने भविष्य को खो सकता है। इसी कारण से, तत्काल काउंसिलिंग बूथ का सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि 32 छात्रों ने मदद ली, और यह सिर्फ शुरुआत है। यदि हम इस मॉडल को अन्य क्षेत्रों में दोहराएँ, तो हम लाखों लोगों की मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, WHO के आंकड़े बताते हैं कि विश्व स्तर पर 970 मिलियन लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, तो क्यों न हम एक स्थानीय स्तर पर शुरू करके एक बड़ी पहेली का टुकड़ा बनें? शिक्षा संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य प्रथम उपचार का प्रशिक्षण देना केवल एक कदम नहीं, बल्कि एक आवश्यक परिवर्तन है। इस परिवर्तन के बिना, आपदा के समय में हमारे स्वास्थ्यकर्मी भी अंधेरे में रहेंगे। इसलिए, विश्वविद्यालय का यह 'मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड' प्रमाणन कार्यक्रम वास्तव में एक भविष्य की नींव रख रहा है। इस पहल को सफल बनाने के लिए हमें केवल बजट ही नहीं, बल्कि सामाजिक समर्थन और निरंतर मूल्यांकन की भी जरूरत है। यदि हम इसे सही दिशा में ले जाएँ, तो अगली पीढ़ी अधिक लचीली और सक्षम होगी। अंत में, याद रखिए कि हर छोटा कदम बड़ी चक्रवात को रोक सकता है।
Ankit Intodia
बिलकुल सही कहा, हर छोटा प्रयास बड़ी तस्वीर में योगदान देता है। जैसे कि एक छोटी चिंगारी भी जंगल में आग लगा सकती है, वैसे ही छोटे कदम बड़े बदलाव की आरंभिक बिंदु होते हैं।