8 मार्च, 2025 को दुनिया भर में मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का थीम है — 'Accelerate Action'। यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक आपातकालीन चेतावनी है: अगर हम आज भी धीमे चलते रहे, तो लैंगिक समानता की पूर्ण उपलब्धि के लिए हमें 2158 तक इंतजार करना पड़ेगा। हाँ, आपने सही पढ़ा — लगभग पांच पीढ़ियां। यह आंकड़ा विश्व आर्थिक मंच के डेटा से आया है, और इसे WILPF, Littler और Dianova International जैसे संगठन भी दोहरा रहे हैं। यह नहीं कि हम आगे बढ़ रहे हैं — हम लगभग जमे हुए हैं।
अगर आप सोच रहे हैं कि यह आंकड़ा कैसे आया, तो जवाब सरल है: हर साल हम केवल 0.5% से 1% की दर से आगे बढ़ रहे हैं। यह इतना धीमा है कि एक महिला के लिए अपनी नौकरी में समान वेतन पाने का समय, एक बच्चे के जीवनकाल से भी ज्यादा है। कोविड-19 ने इस गति को और धीमा कर दिया — महिलाओं ने बेरोजगारी का सबसे ज्यादा बोझ उठाया, घरेलू देखभाल का दबाव बढ़ा, और घरेलू हिंसा के मामले दोगुने हो गए। इसके बावजूद, अधिकांश देशों में बचत और रिकवरी योजनाएं महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि बड़े उद्योगों के लिए बनाई गईं।
2025 का यह महिला दिवस एक ऐतिहासिक तारीख के साथ मिल रहा है — 1995 की बीजिंग घोषणा और कार्य योजना का 30वां वर्षगांठ। तब 189 देशों ने एक साथ बैठकर घोषणा की थी कि महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति और काम के अधिकार अपरिहार्य हैं। लेकिन आज, 30 साल बाद, हम उसी बिंदु पर हैं जहां से शुरुआत हुई थी। कुछ देशों में तो पीछे हटने का रास्ता अपनाया जा रहा है। जहां बीजिंग ने शिक्षा के अधिकार को प्राथमिकता दी थी, वहीं आज कई देशों में लड़कियों के लिए स्कूल बंद हो रहे हैं।
Littler ने एक स्पष्ट, व्यावहारिक योजना तैयार की है — जिसे कोई भी कंपनी, एजेंसी या संगठन आज से लागू कर सकता है:
Dianova International, जिसका मुख्यालय बार्सिलोना में है, बताती है कि संघर्ष और आपदाओं में प्रभावित महिलाओं की संख्या अब 1990 के दशक की तुलना में दोगुनी हो चुकी है। युद्ध, जलवायु आपदा, और अनियमित पलायन — इन सबमें महिलाएं सबसे ज्यादा पीड़ित होती हैं, लेकिन सबसे कम निर्णय लेने वाली। यही कारण है कि UN Women, UNODC और UNESCO भी इस साल 'For ALL women and girls: Rights. Equality. Empowerment' के नारे के साथ आगे आए हैं। एक थीम नहीं, दो थीम्स — यह बताता है कि समाधान एकल नहीं, बहुआयामी होना चाहिए।
कोई भी व्यक्ति आज से बदलाव शुरू कर सकता है। एक कॉफी ब्रेक में जब कोई कहे, 'महिलाएं तो बस घर में रहना चाहती हैं,' तो उसका जवाब दें। जब किसी महिला को प्रमोशन मिले, तो उसकी सफलता को सार्वजनिक रूप से मनाएं। अपने बच्चे को लड़कियों के लिए भी डॉक्टर, इंजीनियर और सीईओ बनने का सपना दिखाएं। यह छोटी-छोटी बातें ही बड़े बदलाव की नींव हैं। Cisco Community का कहना है — 'हम सब अपने रोजमर्रा के जीवन में महिलाओं के लिए अवसर बना सकते हैं। बस एक बार चुप न रहें।'
अगले साल का थीम घोषित हो चुका है — 'Give To Gain'। यह नहीं कि हम देते हैं और खो देते हैं — बल्कि जब हम महिलाओं को शिक्षा, निवेश और अवसर देते हैं, तो पूरा समाज लाभान्वित होता है। एक महिला जब शिक्षित होती है, तो वह अपने बच्चों को शिक्षित करती है। जब वह नौकरी पाती है, तो वह अपने परिवार को खाने के लिए खाद्य देती है। यह एक गुणोत्तर वृद्धि है — न कि घटोत्तर।
2158 तक इंतजार करने का मतलब है कि आज की एक बच्ची जब 130 साल की होगी, तब उसे समान अधिकार मिलेंगे। यह न्याय नहीं, अन्याय है। आज की हर महिला जिसे वेतन असमानता, शिक्षा का अभाव या नेतृत्व का अवसर नहीं मिल रहा, उसकी आवाज़ आज ही उठनी चाहिए — न कि अगली पीढ़ी के लिए छोड़ दी जाए।
भारत में महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी 2024 में केवल 37% रही, जो 2005 के 47% से गिरी है। सरकारी डेटा के अनुसार, केवल 14% सांसद और 11% राज्य विधानसभाओं में महिलाएं हैं। इन आंकड़ों को देखते हुए, 'Accelerate Action' भारत के लिए एक जरूरी आह्वान है — न कि एक वैश्विक चित्र।
नहीं। यह घर, स्कूल, धर्मस्थल, पुलिस स्टेशन और राजनीति तक का मुद्दा है। जब कोई लड़की अपने घर में बाथरूम के लिए लंबा इंतजार करती है, या एक औरत अपने घर के बाहर डरकर चलती है, तो वह भी एक 'सिस्टमिक बैरियर' है। बदलाव को बस कंपनियों में नहीं, बल्कि समाज के दरवाज़े पर लाना होगा।
नहीं। यह पूरे समाज का मुद्दा है। जब महिलाएं अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पातीं, तो देश की आर्थिक वृद्धि धीमी होती है। विश्व बैंक के अनुसार, लैंगिक समानता से वैश्विक आर्थिक वृद्धि में 12 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है। यह न केवल न्याय है — यह बुद्धिमानी है।
हाँ। दुनिया भर में 8 मार्च को स्कूलों, कॉलेजों, ऑफिसों और गांवों में 'Action Pledge' अभियान चलेंगे — जहां लोग एक छोटा लिखित वचन देंगे, जैसे 'मैं अपने टीम में एक महिला को प्रमोट करूंगा' या 'मैं अपने बेटे को घरेलू काम करना सिखाऊंगा।' ये वचन ऑनलाइन शेयर किए जाएंगे — #AccelerateAction के साथ।
भारत सरकार ने 'Beti Bachao Beti Padhao' जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन वास्तविक नीति बदलाव की कमी है। अभी तक कोई राष्ट्रीय स्तर पर 'Accelerate Action' के लिए विशेष योजना नहीं घोषित की गई है। इसके बावजूद, कई राज्यों में निजी संगठन और नागरिक समूह सक्रिय रूप से इस दिशा में काम कर रहे हैं।