जब आप बैंक से बचत खाते में पैसा जमा करते हैं या लोन लेते हैं, तो वह पैसा कहीं न कहीं सरकार के नियंत्रण में होता है. वही कंट्रोल ‘मौद्रिक नीति’ कहलाता है. सरल शब्दों में यह वह तरीका है जिससे भारत की रिज़र्व बैंक (RBI) आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए पैसे का प्रवाह और ब्याज दरें तय करती है.
RBI दो मुख्य टूल इस्तेमाल करता है: रेपो रेट (बैंक को उधार पर देने की दर) और रीपो रेट (बैंक से पैसा लेने की दर). इन दरों को बदलकर RBI बाजार में उपलब्ध धन की मात्रा घटा या बढ़ा सकता है. जब महंगाई बढ़ती है, तो ब्याज दरें ऊपर जाती हैं ताकि खर्च कम हो और कीमतें स्थिर हों.
2024‑2025 की पहली मीटिंग में RBI ने रेपो रेट को 6.50% पर रखा, जबकि पिछले साल इसे 6.25% तक घटा दिया था. इसका मतलब है कि अब बैंक लोन देने में थोड़ा महंगा होगा, जिससे बड़ी खरीदारी और निवेश धीमे हो सकते हैं.
इसी समय RBI ने मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क को ‘लवरेट‑टारगेट’ के साथ जोड़ने की घोषणा की. लक्ष्य था 4% से 6% तक की महंगाई दर, जो पिछले कुछ सालों में 7‑8% के आसपास थी. इस बदलाव से बाजार को स्पष्ट संकेत मिला कि RBI कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए तैयार है.
अगर आप घर खरीदना चाहते हैं, तो उच्च रेपो रेट आपके लोन की किस्तें बढ़ा देगा. वही अगर आप बचत खाते में पैसा रखते हैं, तो ब्याज दर थोड़ा बेहतर हो सकती है. छोटे व्यापारियों के लिए भी यह महत्वपूर्ण है; अधिक ब्याज का मतलब उत्पादन या विस्तार के लिये कम पूँजी.
इन्फ्लेशन कंट्रोल करने की कोशिश में RBI अक्सर फॉरेन एक्सचेंज मार्केट को भी मॉनीटर करता है. अगर डॉलर महंगा हो रहा है, तो आयातित चीज़ों की कीमत बढ़ेगी और स्थानीय बाजार पर असर पड़ेगा. इस स्थिति में RBI विदेशी मुद्रा बाय‑सिलेक्शन करके रुपये को स्थिर रखने की कोशिश कर सकता है.
अंत में, मौद्रिक नीति सिर्फ आर्थिक विशेषज्ञों के लिए नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के वित्तीय फैसलों से जुड़ी है. जब आप अपने खर्च, बचत या निवेश का प्लान बनाते हैं, तो RBI की हालिया नीतियों को ध्यान में रखें. इससे आपको बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी और अप्रत्याशित दर बदलावों से बचा जा सकेगा.
अगर आप मौद्रिक नीति के बारे में और गहराई से जानना चाहते हैं, तो RBI की आधिकारिक प्रेस रिलीज़ और आर्थिक सर्वे देख सकते हैं. नियमित अपडेट्स पढ़ते रहें, ताकि आपका वित्तीय जीवन सुगम रहे.
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने ऋण और जमा वृद्धि के अंतर पर जोर दिया। यह अंतर आरबीआई की मौद्रिक नीति के निर्णयों के लिए महत्वपूर्ण है। गवर्नर ने बताया कि छोटे ऋणों पर ब्याज़ दरें अत्यधिक हैं। यह लेख ग्राहकों के हितों को प्राथमिकता देने के लिए आरबीआई की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।